प्रताप पताका | Pratap Pataka

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Pratap Pataka by रणवीरसिंह शक्तावत - Ranvirsingh Shaktavat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# दुआ करे दरगाह, पड़ेन पालो राणा सू । ग्रथवा-हुआ करं दरगाह, सपन न दिसे प्रतापसी 1 -पाठांतर प्रताप-पताबा चेरयो লাশ घुमंड, मुगछ-मेघ-मंडठ महा। पातछ-पवन प्रचंड, खंड-खंड खठ-दठ करयो , १११॥ पेख्याँ चित्र--प्रताप, चित्रलिख्या चकता रहै। जप-जप अल्ला' जाप, खेर मनावे खौफ सू ॥ ११२॥ सुणताँ नाम 'प्रताप', ठाप तुरँग चेटक तणी। तुरक लोग खा ताप, सपनं भरदे सूथर्णां ।॥ ११३॥ कीदौ ब्रत-बनवास, जद सु राण प्रतापसी । अकबर छोडी आस, निज जीवण-सुख-नींदरी । ११४ ॥ सुरक-युरक मुख साह, हुरक-हुरक हरां -हियो । चुरक-चुरक अ्रणयाह, रहै पता म्हाराण सू ।॥ ११५॥ एकल्मि-दीवाण, महारण परतापसी | राख्यौ भुज रै पाण, घरम-करम हिंदुप्राण रौ॥ ११६॥ ` सोचो सह संसार, होवे किम इकसार ही। द अकबर . कछ -भ्रवतार, सत-अ्रवतार प्रतापसी ॥ ११७॥ दुसह रात-दिन दाह, रहगी. दिल में साह र। तम्यौ न॒ सिर नरनाह, प्रण कर राण प्रतापसी ॥ ११८ ॥ इक मजह॒ब इसलाम, चाह्यौं अकबर करण चिते । अड़यौ पतौ असि थाम, होबा दियो न हिन्द में ॥ ११६ ॥ मुरगी समझ मिवाड़, बिसमिल्ला करण्याँ मियाँ । द द नाह पता सू नाड, तुडवा तेतीसा कर्या ॥ १२०॥ ग्रकबर चह्यौ उठाण, फुट जाणनं फायदो । मेदपाट म्हाराण-पतौ न भ्रायौ पकड में ॥ १२१॥ ग्रारज जाति श्रनाथ--ब्ही नहं तो-छंत हिन्द में! पातल तू प्रथिनाथ, हौ संचो हिन्दूपती ॥ १२२॥ না ঈদ ०५८५




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