जैन बौद्ध तत्वज्ञान | Jain Bhaudh Tatvgyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र (३) ए० १४८ साइसुत्त ( अ० नि० ८, १, २, २ )-- “एक समय भगवान बेशालीमें थे....उस समय निगठों (जनों ) का श्रावक सिंह सेनापति उस समामें बठा था....तव सिंह सेनापति जहां निगठ नाथपुत्त थे वहां गया। सिंह | तुम्दारा कुछ दीधकालछसे (निर्मठोक्े छिय प्याउकी तस्ह रहा है | उनके जानेपर पिंड न देना ऐसा मसल समझना | (४) ४० २२८ चूछदुःख खन्ध छुत्त (म०्नि० १: २: ४) “एक समय में राजगृहके गृद्धक्रूट पवतपर्‌ विहार करता धा उस समय बहुतसे निगठ ( जन साधु ) ऋषिगिरिकी काल शिलापर खड़े रहनेका ब्रत ले तीब्र वेदना झेल रहे थे । निगठो * तुम क्यों वेदना झेल रहे हो! तत्र उन निगंठोंने कहा-- £ निगठ नातपुत्त (जन तोर्थकर महावीर ) सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, आप अखिल ज्ञान दशनको जानते हैं | चलते, खड़े, सोते, जागते, सदा निरंतर (उनको) ज्ञान दशन उपस्थित रहता है | (५) प्ृ० २६*-प्रहासुकुलुशाये-सुत्तू-( म० नि० २: ३:७ ) “शजगृहमें वर्षावासके लिये आए हैं। কা नाथ-पुत्त | (६) ४० २८० चूल सुकुलदाय सुत्त-म० नि० २-३-९) कोन हैं-सवेज्ञ, सर्वेदर्शी, निखिलज्ञानसम्पन्न होनेका दावा करते हैं। मते-निगंठनाथपुत्त । (७) प० ३४१ देवदइसुच ( म० नि० ३: १: १) उन निगंठोने मुझे कहा “' निगंठनातपुत्त स्वज्ञ सर्वदर्शोा अखिल ज्ञानदशनको जानते हैं |? (८) प्र ४४९-उपालिसुत्त-( म० नि० २: २: ६) उस समय निगंठ नातपुत्त निगंठों (जैन साधुओं ) की बड़ी परि- অনুক্ধ साथ नालेंदामें विहार करते थे |




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