जैन बौद्ध तत्वज्ञान | Jain Bhaudh Tatvgyan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
44 MB
कुल पष्ठ :
260
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बी. सीतलप्रसाद - B. Seetalprasaad
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)र
(३) ए० १४८ साइसुत्त ( अ० नि० ८, १, २, २ )--
“एक समय भगवान बेशालीमें थे....उस समय निगठों (जनों )
का श्रावक सिंह सेनापति उस समामें बठा था....तव सिंह सेनापति
जहां निगठ नाथपुत्त थे वहां गया।
सिंह | तुम्दारा कुछ दीधकालछसे (निर्मठोक्े छिय प्याउकी तस्ह
रहा है | उनके जानेपर पिंड न देना ऐसा मसल समझना |
(४) ४० २२८ चूछदुःख खन्ध छुत्त (म०्नि० १: २: ४)
“एक समय में राजगृहके गृद्धक्रूट पवतपर् विहार करता धा
उस समय बहुतसे निगठ ( जन साधु ) ऋषिगिरिकी काल शिलापर
खड़े रहनेका ब्रत ले तीब्र वेदना झेल रहे थे ।
निगठो * तुम क्यों वेदना झेल रहे हो! तत्र उन निगंठोंने कहा--
£ निगठ नातपुत्त (जन तोर्थकर महावीर ) सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, आप
अखिल ज्ञान दशनको जानते हैं | चलते, खड़े, सोते, जागते, सदा
निरंतर (उनको) ज्ञान दशन उपस्थित रहता है |
(५) प्ृ० २६*-प्रहासुकुलुशाये-सुत्तू-( म० नि० २: ३:७ )
“शजगृहमें वर्षावासके लिये आए हैं। কা नाथ-पुत्त |
(६) ४० २८० चूल सुकुलदाय सुत्त-म० नि० २-३-९)
कोन हैं-सवेज्ञ, सर्वेदर्शी, निखिलज्ञानसम्पन्न होनेका दावा करते
हैं। मते-निगंठनाथपुत्त ।
(७) प० ३४१ देवदइसुच ( म० नि० ३: १: १)
उन निगंठोने मुझे कहा “' निगंठनातपुत्त स्वज्ञ सर्वदर्शोा अखिल
ज्ञानदशनको जानते हैं |?
(८) प्र ४४९-उपालिसुत्त-( म० नि० २: २: ६)
उस समय निगंठ नातपुत्त निगंठों (जैन साधुओं ) की बड़ी परि-
অনুক্ধ साथ नालेंदामें विहार करते थे |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...