स्वाधीनता आन्दोलन और उदारवादी एवं उग्रवादी एक तुलनात्मक मूल्याँकन | Swadhinata Aandolan Aur Udaravadi Evm Ugravadi Ek Tulanatmak Mulyankan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
92 MB
कुल पष्ठ :
239
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संघर्ष धारदार रूप इसलिए प्राप्त नहीं कर पा रहा था कि आन्दोलन को संग्राम
के लिए कोई बैनर प्राप्त नहीं था। 19वीं सदी के तीसरे दशक ने भारतीय
खुशियों की झोली में एक ऐसी अनुपम भेंट डाल दी, जिसने अपने
चमक-चेतना से सुसुप्त भारतीय चिन्तन को आलोकित कर दिया, उस नर
श्रेष्ठ का नाम दादा भाई नौरोजी था, दादा भाई नौराजी का जन्म (1825) उस
काल में हुआ था, जब 1757 की प्लासी पराजय के बाद भारत दासता के सात
दशकों के दंश को झेल चुका था। वे अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बल पर
ही कालान्तर मेँ सारे देश के दादा अर्थात पितामह कहलाये |
दादा भाई नौराजी ने सार्वजनिक जीवन की दहलीज में स्त्री शिक्षा में.
सुधार के रूप में पहला कदम रखा। उन्होनें 1851 में रहनुमाए मजद यासन
सभा नामक पहली संस्था स्थापित की| उसके बाद दादाभाई ने “ज्ञान प्रसारक
मण्डली” नामक संगठित संस्था बनायी। उसके बाद दादाभाई नौराजी ने 26
अगस्त 1852 को “बम्बई एसोसियेशन” नामक पहली राजनीतिक संस्था गठित
की, तत्पश्चात दादाभाई ने चार बार ब्रिटेन की यात्रा कर वहाँ पर लंदन
इण्डियन सोयायटी एवं “ईस्ट इण्डिया एसोसियेशन“ नामक বগা गठित कर
वहाँ पर भी भारतीयों के पक्ष को उजागर किया। इस तरह से यह कहा जा
सकता है कि दादाभाई नौरोजी ने भारतीय स्वातन्त्रय् संघर्ष को “बम्बई
एसोसियेशन” नामक पहली राजनीतिक संस्था को गठित कर एक बैनर प्रदान
किया। इस तरह दादाभाई नौरोजी को राजाराम मोहनराय के बाद दूसरा
उदारवादी आदोंलनकारी कहा जा सकता है।
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