राजरूपक | Rajroopak

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Rajroopak by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भमिका ९५ राजपूतान! का इतिहास जैस। डिगल भाषा में वर्णित है, वैसा अन्य किसी भाषा से उपलब्ध नही ই | कारण यह कि डिंगल भाषा राजस्थानी भाषा है और यह स्व-सम्मत तथा युक्ति-युक्त है कि जैसा वर्णन प्रचलित देश- भाषा में होता है वैसा अन्य भाषा में नहीं हे! सकता | जैन धर्म के आचार्यों ने जैन धर्म प्रचार के लिये जितने ग्रंथ लिखे वे सब्र माध देश के सबंध से सागधी भाघा से लिखे गर। क्येकि आदि जैनाचाय का निवास मगध में था | शुजरात के निवासी कवियों ने गुजराती भाषा में लिखे। देहली के बादशाह धायः इरान (पारस) देश से आए थे। इसलिये पारस देश के संबंध से चादशाहों के समय में जो ग्रंथ लिखे गए वे सब प्रायः पारसी भाषा में हैें। बंगाल के निवासी कवियों ने लो अंथ लिखे वे बंगाली भाषा में हैं। महाराष्ट्र देश के कवियों ने जितने ग्रंथ लिखे वे सब मराठी -भापा में हैं। पंजाब के निवासी कवियों ने पंजाबी भाषा में लिखे | त्रज-मडल के निवासी कवियों ने प्रज्ञभाषा सें ग्रंथों की रचना की। यह ठीक है कि यथाथ रहस्य अपनी देश-भाषा मे जैसा रहता है वैसा अन्य भाषा में नहीं रहता ओर वही हुृदयंगम हेता है | डिंगल भाषा राजस्थानी भाषा है इसी से राजस्थान के कवियों ने अपनी राजस्थानी भाषा में कविता निर्माण की है। डिंगल भाषा ओजस्विनी ओर वीररस की पूर्ण पोषक है और राजस्थान वीर पुरुषों का आकर है इसलिये हंगल भाषा अधिक्रतर वीर-रस्मय देखने में आती है। इससे यह नहीं समंभना चाहिए कि डिंगल भाषा केवल वीर-रसमय दी हे। इसमें शांत, आंगार, करुण आदि समस्त रसोंवाली कविता उपलब्ध है। शातरस के लिये 'हरिरस” आदि ग्रथ प्रसिद्ध हैं। श्ुगार-रस के 'सधु- मालती, ढोक्ला मारक्ण रा दृहा, रतना हमीर री वात, पन्ना वीरमदे री वात, दोला मारव री वात? आदि अनेक ग्रंथ विद्यमानं हैं। करुणरस से भरे (करुण बतीसी? आदि अनेक ग्रंथ हैँ। अद्भुत रसवाली कविता 'कायर बावनी” आदि ग्रंथ देखने में आते हैं। हास्यरस के अंथ “विहुर बावनी? आदि मिज्ञते हैं, जो अपनी अपनी कोटि में अग्रतिम हैं ।




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