विचार यात्रा | Vichar Yatra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
50 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वैदिक उपनिषद युग में शिक्षा के सम्बन्ध में गहन चिन्तन का ही परिणाम था कि '
चिन्तन और सृजनात्मकता की पराकाष्ठा पर हम उस युग में ही पहुंच चुके थे। ट्वायनबी ने
भारतीय संस्कृति की चरम परिणति का युग वैदिक उपनिषद युग को ही माना है। इस युग
में शिक्षा के संबंध में गहन चिन्तन का ही परिणाम था कि चिंतन और सृजनात्मकता की
पराकाष्ठा पर हम उस युग में ही पहुंच चुके थे। ट्वायनबी ने भारतीय संस्कृति की चरम
परिणति का युग वेदिक उपनिषद युग को ही माना है। इस युग तक भारतीय संस्कृति के
आधारभूत तत्वों ने स्वरूप ग्रहण कर लिया था। वैदिक उपनिषद संस्कृति जिस भारतीय
भू-भाग में विकसित हुई वह क्षेत्र प्राचीन समय में गुरु पांचाल के नाम से विख्यात था । मेरठ,
दिल्ली ओर हरियाणा का क्षेत्र कुरु मे सम्मिलित था। पंचा्लो की राजधानी थी अहिच्छत्र,
जिसके अवशेष बरेली जिले की आंवला तहसील में स्थित रामनगर ग्राम में देखे जा सकते
हैं। इस प्रकार प्राचीन पंचालो कर क्रिया कलापो का प्रमुख केन्द्र वर्तमान रुहेलखंड ही है, जहां
आपका विश्वविद्यालय है। इसी क्षेत्र मे भारतीय ज्ञान, विज्ञान एवं प्रज्ञान का चरम विकास
हुआ था। उपनिषद दर्शन के विकास मे पंचाल के प्रवाह जैवलि, प्रतर्दन, गारग्यायन
चैकितायन एवं उद्दालक की प्रमुख भूमिका रही है । शतपथ ब्राह्मण के इनुसार अपने शुद्धतम
उच्चारण के लिए विख्यात वेदपाठी पंडितों की संख्या पंचाल में कुछ सौ में नहीं, बल्कि
सहस्रो मे थी। मिथिला के दार्शनिक राजा विदेह जनक के द्रबार मे आत्मवादी दर्शन के
प्रमुख प्रणेता ऋषि याज्ञवल्क्य को पंचाल से आमंत्रित किया गया था! पंचाल राजाओ के
संरक्षण मेँ स्थापित विद्रत्परिषद् की यहां के बौद्धिक वेचारिक संस्कृति के निर्माण में
आधारभूत भूमिका रही हे । भारतीय दर्शन के भौतिकवादी चिन्तन के बीज भी यहीं के उद्दालक
आरुणि के सिद्धान्तो में प्रस्फुरित हुये थे। भारतीय संस्कृति की प्रगतिशील मानसिकता
एवं वेज्ञानिक तर्कं पद्धति के सूत्रपात का श्रेय इस क्षेत्र की धरती को प्राप्त है। भारतीय कला
के सुन्दरतम उदाहरण इसी क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं। पंचाल के कवियों की मधुर और कर्णप्रिय
रचनाओं तथा नाट्यकला की भूरि-भूरि प्रशंसा की गयी है। हर्षवर्धन के काल मे आया चीनी
यात्री हेनसांग इस इलाके के विषय में लिखता है कि “यहां के निवासी सत्यनिष्ठ थे तथा.
धर्म और विद्याध्ययन में उनकी विशेष अनुरक्ति थी।'
यह इलाका विभिन्न मतों और सम्प्रदायों का संगम स्थल रहा है। पंचाल भूमि निवास
करने वाले शेव, वेष्णव, बौद्ध और जेन आदि सभी मत-सम्प्रदायों के मध्य यहां साम्प्रदायिक
सद्भाव था। मध्यकालीन युग में हिन्दू मुसलमानों ने यहां प्रेम और सदभावना के साथ मिल
जुलकर कार्य किया है। १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में खान बहादुर खां एवं शोभाराम
के नेतृत्व में इस इलाके के हिन्दू-मुसमलानों ने डटकर मुकाबला किया था। बरेली नगर में
साम्प्रदायिक एकता एवं धार्मिक सदभाव की अपनी इस विरासत को आज तक संभाल कर
रखा गया है, जबकि देश में आज अनेक तत्व इस महान परम्परा को नष्ट करने पर तुले हुये
हैं, इन तत्वों का मुकाबला करना और देश को सही नेतृत्व प्रदान करना विश्वविद्यालय का
( ९ )
User Reviews
No Reviews | Add Yours...