स्वच्छन्दतावाद एवं छायावाद का तुलनात्मक अध्ययन | Swachchhandatavad Evm Chhayavad Ka Tulanatmak Adhyayan

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Swachchhandatavad Evm Chhayavad Ka Tulanatmak Adhyayan by शिवकरण सिंह - Shivkaran Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-प्रवेश / ७ सुलभ एवं ग्रहणीय बन जाते हैं। इन दोनों ही धाराओं के कवियों में इस प्रकार मानव चिन्तन-धारा के विकास-क्रम की निश्चित सरणि का दर्शन हुआ है। इस निश्चित सरणि के साम्य एवं वैषम्य को ही चित्रित करना मेरा प्रमुख उद्देश्य रहा है। यथार्थ में स्थल मान्यताओं ने मानव-मानव के बीच एक भेद की दीवार खड़ी कर उसका विभिन्न वर्गों में बँटवारा कर रखा है। परन्तु जब आज देश-काल की सीमायें टूट रही हैं और चिन्तक विश्व को एक राष्ट्र का रूप प्रदान करने के लिए उत्सुक हैं तो इस अवस्था में विभिन्न संस्कृतियों का अध्ययन कर उनको स्थूलतामे चपि चिरन्तन सत्यों के स्पष्टीकरण का भी महत्व है। अध्ययन के दौरान में ग्रीक दर्शन एवं भारतीय दर्शन की कुछ बातें आई हैं। बाह्य विभिन्नताओं के बावजूद उनमें निहित साम्य इसी बात की ओर संकेत करता है कि मानवता के चिरन्तन सत्य एक से हैं और वे देश-काल की सीमा में नहीं बँध सकते । इस विचार की पृष्ठभूमि में वे मान्यतायें मेरे लिए निरर्थक न सिद्ध होती हुई अधिक आकर्षक मी नहीं सिदध हो सकी जिनमे हम इन धाराओं को केवल सेली का प्रकार मान कर अथवा केवल प्रभाव के आधार पर इनको विवेचना प्रस्तुत करते हँ । स्वच्छन्दतावाद स्वयं अपने आन्दोलन के लिए जमनी, फ्रांस, यूनान, इटली, स्पेन प्रभृति देशों का मुखा- पेक्षी रहा है। उसने उसके स्पन्दन को अपने साहित्यिक कलेवर में समाहित करने का अद्भृत् प्रयत्न किया है । इसे दृष्टिपथ में रख कर हम प्रभाव के कारण छायावाद को हेय नहीं ठहरा सकते । आज के युग मे एतहेशीयता स्वंयससिद्ध निरथंकता प्रमाणित हृई है । साहित्य ने भी कमी सीमा नहीं स्वीकार किया ह । यह्‌ असीम है । अतएव इसमे जो भी प्रभाव आये हैं, वे मिल कर एकमेक होकर इसके अंश बन गये हैं । परन्तु इस दृष्टि से यह मान लेना कि छायावादी साहित्य में सभी कुछ विदेशी ही है भ्रान्तिमुलक होगा । इस प्रकार प्रभाव और शैली की एकता एवं विभिन्नता के साथ ही साथ चिरन्तन सत्यों की एकता एवं अनेक्ता को ढूंढ़ने का प्रयत्न ही इस प्रबन्ध का मूल उद्देश्य है । लेखक का मत है कि 'छायावाद' में “स्वच्छन्दतावाद' की श्रवृत्तियाँ हैं, फिर भी छायावाद स्वच्छन्दताव[द नहीं है । दोनों में बहिरंग परीक्षा के आधार पर स्पष्ट अन्तर परिलक्षित होता है । परन्तु अन्तरंग परीक्षा वारा इनमें शाश्वत विचारों की एक अजस्र निर्झरिणी प्रवाहित होती दृष्टिगोचर होती है जिनमें पर्याप्त साम्य है ।




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