प्राकृत सूक्ति सरोज भाग - 1 | Prakrit Sookti Saroj Bhag-1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
770
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सरोन। ] (७) [ दानाधिकार
मूर,
महया वरि हु जन्तेणं बागे आसन्नलक्खमदिगिन्च ॥
युक्को न जाई द्र इमासंसाए दण पि ॥५
छाया
महता पि हि यत्नेन वाण आपतनलकष्यमधिङृत्य ॥
मुक्तो न॒ याति दर अनयाज्ञएया दानमपि ॥५॥
दोहा
अत्ति प्रयत्न ते सयुक्त पिण षह समीप यदि खक्ष ॥
दुर नहीं जवे तथा, जान दान दो दश्च ॥५॥
अन्वयाथे - ( आम्बक्नकं ) समीपवर्ती लक्ष्य [ निश्वाने ] को
( अहिगिश्य ) ध्यान में रखकर [ अधिकार में करके ] ( महया ) महान
{ ज्ञत्तेण ) प्रयत्नो द्वारा ( सुक्को ) छोडा हुमा ( चि ) भी ( श्राणो ) चाण
“(दूर ) दूर (न) नहीं ( जाइ ) जा सकता है ( इमा ) इसी ( आस्षसाए)
भाएंसा [विचार] से ( दाण पि ) दान भी देना चाहिये ।
सावाश् - यथा समीपवत्ती रस्म बिंदु को आभिमुख रख: कर, मदान् रलं
करा छोटा इवा भी नाण कदापि दूर न्धी जा सक्ता हे, उसी पकार सुपा को, दिया
“ना सत्तं दान भी कदापि निरथैक नदी शो सक्ता ।
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