गृहा मा विभीत | Sakhi Ki Sikh

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Sakhi Ki Sikh by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गर्भ में बैड था, बंद आझे बर के द्वार पर लगे हुए नेपोलियन र रैना की तलवारों के चिन्ह को जव देखा करती थी, उस सम उ दद्य में फ्रांस से बदला लेने की इच्छा प्रवल हो उठी थी। संस्कारों मे क्रांस से बदला लेने নালা দিলা पैदा कर বিয়া गर्भावस्‍था की दस महीने की मशीन इतनी जबर्दस्त है, इ ए! बालक पर डाले यये संस्कार इतना वेग रखते हैं कि जन्म श संस्कार ढीले पड़ जाते हैं.। तभी मनुष्य जन्म की इुलभ मान है । अन्य जन्मों में यह-बात सम्भव नहीं। ` | भारती बड़ी गम्भीरता से इन वचनों को सुन रही थी | ওর मन में कुछ कहने की उत्कंग्ठा जाग्रत हो ही रही थीं कि कमरे प्रन कर दियां वहुनजी, कारण शरीर क्या है जो माता-पिता रज-वीयं में वंधता है 2” । । भारतीय तारी का गौरव सरला बहन ने कहा कि आज तो समय बहुत अधिक हो गयीं है । तुम्हारा अइन समझने योग्य है इसमें समय भी लगेगा । इसलिए अगले दिन की बैठक में हम तुम्हें कारण शरीर और रजवीय॑ से वंधने का तात्प॑य समझायेंगे। आज ती बस यह याद रखो भारतीय स्त्री की स्वरूप माता का स्वरूप है। वह मिस इण्डिया या भिस वर्ड” नहीं बनना चाहती वह ॒तो विद्ला, गार्गी, मेत्रेयी और जीजावबाई बनना चाहती है । कौशल्या, देवकी, अल्जना ओर जानकी वनना चाहती है । वह्‌ तस्या की साक्षात्‌ प्रतिमा है । साधना और संयम का मूततिमानल्प है। वह बालक्ृष्ण से बातें करती है, उस्ते शिक्षित करती है, उसके जीवन निर्माण के लिये हर सम्भव यत्न और तप करती है ! सबको सेवा करना ही उतका काम है। वह कभी सन्‍्तान को जन्म देती है, कभी भोजनादि के द्वारा परिवार का पालन-पोपण करती है, परिवार की उलझी बातों को सुलझाती है, अठकी यात्तों का समाधान करती है । हाव-भाव ववाव-ठनाव ओर उच्छ ब्लैल जीवन के लिये उसके वास कोई समय और अवकाश লী 1 सम्पूर्ण परिवार का आनन्द, जनान्तर गया बर जप পীর द




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