भार्क्सवादी अर्थशास्त्र | Bharksavadi Arthashastr

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Bharksavadi Arthashastr by शंकर दयाल तिवारी - Shankar Dayal Tivari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मुक्त किया जाय। इसलिए तत्कालीन व्यापारियों और कारजानैदारों से जो आजकल के पूँजीपति वर्ग के पू॑ज कहे जा सकते हैं, सामस्तवाद के खिलाफ आवाज उठायी | इस संघर्ष में साम्तवाद की पराजय हुई और पूंजीवाद की विजय हुई ! सभेप में यही हमारे ऐतिहासिक विकास का क्रम है। जब कोई सामाजिक व्यवस्था उत्पादन की शक्तियों के विकास में बाधक होने लगती है तो उस व्यवस्था का दूटना अनिवार्य हो जाता है और उसके स्थान पर एक सयी सामाजिक व्यवस्था कायम होती है जिसमे उत्पादन करने वाले भनुष्यो के बीच नये प्रकार के सम्बन्ध कायम होते है। मार्क्स के सहयोगी एड्रेल्स ने अपनी पुस्तक 'ऐण्टी-इयूरिज्लूं” में इसका वर्णन इस प्रकार किया है-- “इतिहास का भौतिकवादी विचार (अवधारणा) इस प्रस्थापना से आरम्भ होता है कि उत्पादन, और उत्पादन के बाद उत्पादित वस्तुओं का वितिमय समस्त सामाजिक संरचना का आधघ।र होता है, और अभी तक इतिहास में जितनी समाय-व्यवस्थायें देवी गयी हूँ उनमे वस्तुओ के वितरण का ढंग तथा वर्गों अबवा सामाजिक श्रेणियों के बीच के विभाजन का दस इस पर निर्भर द्वोता है कि उस समाज मैं किन चीजों का उत्पादन होता है, किस तरह होता है और उत्पादित बस्तुओं का विनियम कंसे होता है ! इस दृष्टिकोण मे, समस्तं सामाजिक परिवर्तनो तथा राजनीतिक क्रान्तियों के मूल कारणों को हमे मनुष्यों के दिमागो में या शाश्वत भत्य एवं न्याय की मनुष्यों की बेहतर समझ में न खोज कर, उत्पादन तथा विनिमय की प्रणालियों में होने वाले परिवर्तनों मे खोजता चाहिए । इन कारणो को हमे प्रत्येक विशिष्ट युग के बशेन शास्त्र में नही, बल्कि उसके अर्थशास्त्र मे खोजना चाहिए । यह बढ़ती हुई समन्न कि मौजूदा सामाजिक प्रथायें अबुद्धितगत तथा अन्याय- पू ह सौर “विवेक अविदेक बन गया है तथा न्याय अन्याय में रूपान्तरित हो गया है -यह तो केवल इस वात का प्रमाण है कि उत्पादन तथा विनिमय की प्रणातियों में चुपचाप कुछ ऐसे परिवतेन हो गये हैं जिनसे यह समाज पूजीवाद की विशेषता १३




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