भारत का भूगोल खंड - 2 | Bharat Ka Bhugol Khand - 2
श्रेणी : भूगोल / Geography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.01 MB
कुल पष्ठ :
157
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स8 वाली उपज अथवा बागीचे है । इस प्रकार समस्त क्षेत्रफल का लगभग 54 प्रतिदात भाग कृपि योग्य है। ग्रधिकतर फसली क्षेत्र पर श्रनाज बोया जाता है । फिर भी. खाद्यान्न का उत्पादन हमारे लिए पर्याप्त नहीं होता । देश में कृष्यकों की संख्या बहुत भ्रघिक होने के कारण प्रति व्यवित कृष्य भूमि का क्षेत्रफल अधिक नहीं है । श्र्य विकसित देशों की तुलना में यहाँ प्राय सभी जिनसों की कृपीय उपने ग्रभी भी कम हैं । - श्रब कठिनाई यह है कि हमारी मिट्टियां कम उपजाऊ होती जा रही है क्योंकि इन पर बाता- ब्दियों से कृपि हो रही है। क्षतिग्रस्त भूमि तथा इसके समाप्त हुए उपजाऊपन को पुनः प्राप्त करना इस समय परमावदयक है । सिंचाई तथा खाद की श्रौर श्रधिक सुविधा तथा बीजों की ग्रधिक उत्तम किस्मों का प्रयोग कुछ ऐसे उपाय हैं जिनसे उत्पादन तथा प्रति इकाई उपज बढ़ सकती है । पंजाब तथा हरियाणा में सन् 1970- 71 में सिंचित गेहूं की उपज सध्य प्रदेश के ग्रधिक- तर वर्षा के ऊपर निभंर होने वाले गेहूं के उत्पा- दन से लगभग तीन गुनी थी । बिना कृपि वाली भूमि जिसमें वन स्थायी चरागाह कृषि योग्य बंजर कृषि श्रयोग्य क्षेत्र तथा वह भूमि जो कृषि के लिए उपलब्ध नहीं है सभी सम्मिलित हैं । यह क्षेत्र लगभग 17 करोड़ 20 लाख हेक्टेयर है श्रौर देश के कुल क्षेत्रफल का 46 प्रतिशत बनता है । इस वर्गीकरण में सुधार की श्रभी भी बहुत झावश्यकता है । यह भी हो सकता है कि वन वाली झूमि में केवल साघा- रण से पौधों का श्रावरण हो तथा क़पि योग्य बंजर भूमि पर श्रधिक वन हो सकते हैं । स्थायी चरागाहों में हो सकता है कि इतना श्रधिक पशु- चारण न रहा हो जितना कि श्न्य प्रकार की परती तथा कृषि ग्रयोग्य भुमि में । इसीलिए भुमि उपयोग के ठीक वर्गीकरण तथा प्रत्येक प्रकार के वर्गे की ठीक-ठीक उपजाऊ क्षमता का ज्ञान नहीं हो पाता । इस समय सामान्य प्रवृत्ति यह है कि कुछ क्षि योग्य बंजर तथा पुरानी परती भूमि के क्षेगफल में कमी हुई है तथा दोहरी फसल के भारत का सामान्य भूगोल उत्पादन मे वृद्धि हुई है । यह परिवतन सिंचाई की सुचिधा में विकास के कारण हुम्रा है । कृपीय उत्पादन की वृद्धि के प्रमुख केन्द्रीय तत्व के रूप में सिंचाई के ऊपर बल देने से सिचिंत क्षेत्र सन् 1951 में 2 करोड़ 10 लाख हेक्टेयर से बढ़- कर सन् 1973 में 3 करोड़ 19 लाख हेक्टेयर हो गया है। इस समय हमारे समस्त साधनों से सिंचित क्षेत्र का क्षेत्रफल ब्रिटिश दीप समूह के समस्त थल भाग के क्षेत्रफल से श्रधिक है । सन् 1950-51 से लेकर 1973-74 की म्रवधि में कृषि उत्पादन में मूल्य के आधार पर 70.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है । कपास तथा झनाज का उत्पादन दूगुने से भी बढ़ गया है । रोपण फसलों का उत्पा- दन भी बहुत बढ़ा है जबकि तिलहन दालों तथा तम्वाकू की उपज में बढ़ोत्तरी घीमी रही है । 4. बन हमारे देश में किसी न किसी प्रकार के बन कुल 7 52 982 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर फैले हैं जो देश के समस्त क्षेत्रफल का 21 प्रतिशत से कुछ श्रघिक है। देश की वन नीति के अनुसार एक लक्ष्य स्थापित किया गया है जिसमें वन क्षेत्र को देश के समस्त क्षेत्र के 33 प्रतिशत तक पहुंचाना है । इसका 20 प्रतिद्यत भाग मैदानों में तथा 60 प्रति- दत भाग पहाड़ों में होगा । सन् 1951 तथा सन् 1973 के मध्य लगभग 20 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर मनुष्यों द्वारा रोपित वत लगे । वन बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनसे पहाड़ी ढालों पर नदियों के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में भूमि का कटाव रुकता है वर्षा में वृद्धि होती है तथा स्थानीय जलवायु उत्तम प्रकार का हो नेलगता है । हमें इन से बहुमूल्य लकड़ी तथा अन्य भ्रनेकों श्रौद्योगिक कच्चे माल वे वस्य उपजें सिलती हैं । भारत के वनों में बहुत श्रधिक ब्रिविधता है । यहाँ के वनों में पेड़ों की श्रनेक प्रकार की किसमें है तथा बनस्पतिक आवरण की सघमता में भी बहुत श्रस्तर है । यहां केरल तथा श्रसम में उष्ण कंटिंवंघीय सदाबहार वन हैं श्रौर पदिचमी हिसा- लय के भागों में कोणधारी बन । मध्य प्रदेश से ईलथिर हर ग १
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