मनुष्य ही अपने भाग्य का निर्माता है | Manushy Hi Apane Bhagy Ka Nirmata Hai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
501 KB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वाह्य-जगत १५
दूसरों से जो ध्वनि पहुँचती है बह व॒ग्धारे ट्वी फर्मो का फल है ।
बाहरी परिस्थितियों साधन मात्र हैं, किन्तु तुम कारण हो।
भाग्य कमी बा विधाक है| जीवन का फल (सुख व दुःख )
दोनों मनुष्यों को अपने कर्मानुसार मिलते हैं। धार्मिक मनुष्य
स्वृतस्त्र है, उसे काई द्वानि नदी पहुंचा सकता, उसकों कोई नप्द
नहीं कर रुकता और उसका शाम्ति को कोई भग नहीं कर
सकता । मतुष्यो के प्रति उसकी सहानुभूति के कार्य उनवी
द्साद्वात्त को मष्ट कर देते हैं । याद वाई उस धार्मिक
मनुष्य को दुःख बा ভান पहुंचाना चाहता हैतावद स्वय
दुःख शरीर ঘানি उठाने लगता है, उलट उसी का दुख हाता
है। धघामिंक मनुष्य को त/बलश छू भा नहीं पाता | धार्मिक
पे श्रच्दे मनुष्य वी घामिकता ४ए अ्रच्छाइ ही
शान्ति य सुख है, पेददी उसरा 157 হাঙ্কল &,
घरिध्र में हे और उसका पल प्रमन्नग है ।
प्रायः लोग सोचते हूँ ।क टूसर ये बादों से
इसका परम
उसकी অঙ্গ
उसका टन
हो शक्ती है, वहाँ थे यूल बरत हैं। उनशी हानि उननमो
ছায়া नहीं होती बल्कि उनसे क्मों वे चिनन करने मल्क
है| उद्दाधग्ण फे लिए “बइनार्म! काले लाए! मनुष्य
रामभठा दै कि অন্ত, হেনিন १1 बदनाम परने मे তল
पशनाम हो ापंगी | विन्द হব হং है | छोडिती দা হহনান
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