विनोबा के साथ सात दिन | Vinoba Ke Shath Sat Din

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Vinoba Ke Shat Sat Din by श्रीमन्नारायण - Shreemannanarayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक चल-विश्वविद्यात्तय १३ भी भ्रच्छा ज्ञान है। उन्होने मर्डर प्रौर भ्ररवी भाषा एर भी प्रच्छा प्रधि- वार हासिल किया है। बहत-्सी भाषाएं सीख लेने की भ्रपनी इस प्रतिभा वी सफाई में उनका कहना है कि उन्हे सुद भपनी मातृभाषा मराठी का साधिवार ज्ञान प्राप्त करने का शभ्रच्छा मौका मिल गया था । उनका विश्वास है कि भ्रगर कोई व्यक्ति एक भाषा प्रच्छी त्तह सीख ले और उसके व्याकरण तथा दब्द-विन्यास को योग्यता हासिल करले, सो उसके लिए दूसरी भाषाप्रों वा भी कामचलाऊ ज्ञान प्राप्त कर लेता मुश्किल नही है । विनोवाजी लापरवाही से या उडती नजर की पढाई में विश्वास नहीं करते । वे जिस किताब को उठाते है, उसे खूब भ्रच्छी तरह झौौर श्रद्धा के माथ पढने ह । दरप्रसल, उन्होने गीता, उपनिषद्‌, रामायण भौर कुरान का बहत ही गहरा भ्रध्ययन किया है । सचमुच, वे दुनिया के सभी धर्मों के पूरं ज्ञाता है । करीव-करीब तीस साल पहले जेल में प्रपनें साथियों के वीच उन्टोने जो 'गीता-प्रवचन' दिये थे, वे इसी नाम से भारत की कई आपाओं में पुस्तकाकार प्रकाशित हो चुके है भौर प्रदतक उसकी कई लाख प्रतियां प्रार्थना-सभा के वाद विक चुकी है । विनोवाजी भ्रपनी इम पुस्तक को इतना प्रधिक महत्व देते हैं कि वे रीजाना शाम को बिकी हुई प्रतियो पर अपना हस्ताक्षर वःरना स्वीकार कर लेते है । उतका विचार है कि गीता का पूरा-दरा पभ्रध्ययत कर लेने से प्रपने व्यक्तित्व के सभी पहलुओ के विकास में वडी मदद मिल सकती है। पिछले घार-पाच वर्षों से वे लोगी को जिस ढग पर भूदान-भान्दोलन का स्‍्राशय सममभाते प्रा रहे हैं, वह प्रदभुत है। उसका प्रार्यता के वाद दा भाषण रोजाना नए विचारों, दृष्टान्तों भ्रौर दृष्टिकोण से भरा होता है। विनोवाजी भूदान के सम्दन्ध में झपने विचार स्पष्ट घरते समय सभी तरह के सम्भव विधयों पर रोशनी डालते है। वें जन्मजात शिक्षक है। बच्चों को पढ़ाते समय या अपने दर्शकों नोई मया दृष्टिकोण समकझाते समय वे जितने प्रसन्न्‌ पौर प्रपने स्वाभा- “होते रै, उतने प्लौर कभी नहीं होते ।




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