गीतावली सटीक | Geetavali Sateek

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Geetavali Sateek by हरिहर प्रसाद - Harihar Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म ९११ ) तिथि थार नपत यह योग लगन सुभ ठानो। छल घल गगग प्रसन्न साधु सन दसदिसि छिय हलमसानी ॥ २॥ बर- घत सुसन वधाव संगर नभ हरप न जात बयानों । জী ऋम्तास रनिर्धांसनग्महिं त्यों जनपद লঘালী | ३॥ अमर नाग स॒नि सनुझण सपरिज्षन विगतविषाद गलानोी। নিনিষ্টি सास रावन रजनीचर लेकसंक अकुलानी॥ ४॥ देवपितर गुरुविप्र पूणि रूप दियेदान रुचि जानी। मुन्ति बनिता पुर भनाईि सुभासिनि सहसभांति सनसानी ॥ ५ ॥ पाद অপার असीसत निकसत जाचकजन भण दानी । यों प्रसन्न कैकई मुमिवरिं रोहमरस भवानी ॥ ६ ॥ दिन दूसरे भूप भाभिनि दोठ भई सुमंगणपानी। भयो सोहिलो सोहिलो सी जमु रुष्ि सोश्लि सानी ॥७॥ नाचत गावत सो मनभावत सुप मुत्रबध अधिकानी । देत लेत पद्िरत पष्टिरावत प्रजा प्रमोद अघानी ॥ ८॥ गान निसान कीलाइल यौतुकं देपत दुनौ सिशनी। हरि विरेचि रपुर सोभाकुणि की सलपुरो लुभानो॥ आनंद भवनिराजरवनी सब सागह कोपि जुडानी । आसिपय ददे सराटददिं सादर उमा रमा ब्रह्मान ॥ १०॥ विभवविलार वादि दसरथकौ देपि म निनहिं सोदानी । कौरति कुसल भरि जय रिषि सिधि तिन्ह पर सबे कीहानी ॥ ११ ॥ छठी बारह लोकवेदविधि करि मुविधानविधानौ । राम लपन रिपुद्मग मर्त घरे नाम ललित गुरन्नानौ ॥ २२॥ सुक्तत सुमन तिरं मोद बसि विधि जतन उंच भरि -घानी। सुपसनेष सव दियो दसरथद्टिं परि पेल थिर धानी ॥१३॥ अनुदिन उदय उछाइ उसग जग घरघर अवधकंडानी। तुलसरू




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