गीतावली सटीक | Geetavali Sateek
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
308
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)म ९११ )
तिथि थार नपत यह योग लगन सुभ ठानो। छल घल
गगग प्रसन्न साधु सन दसदिसि छिय हलमसानी ॥ २॥ बर-
घत सुसन वधाव संगर नभ हरप न जात बयानों । জী
ऋम्तास रनिर्धांसनग्महिं त्यों जनपद লঘালী | ३॥ अमर
नाग स॒नि सनुझण सपरिज्षन विगतविषाद गलानोी। নিনিষ্টি
सास रावन रजनीचर लेकसंक अकुलानी॥ ४॥ देवपितर
गुरुविप्र पूणि रूप दियेदान रुचि जानी। मुन्ति बनिता पुर
भनाईि सुभासिनि सहसभांति सनसानी ॥ ५ ॥ पाद অপার
असीसत निकसत जाचकजन भण दानी । यों प्रसन्न कैकई
मुमिवरिं रोहमरस भवानी ॥ ६ ॥ दिन दूसरे भूप भाभिनि
दोठ भई सुमंगणपानी। भयो सोहिलो सोहिलो सी जमु रुष्ि
सोश्लि सानी ॥७॥ नाचत गावत सो मनभावत सुप
मुत्रबध अधिकानी । देत लेत पद्िरत पष्टिरावत प्रजा प्रमोद
अघानी ॥ ८॥ गान निसान कीलाइल यौतुकं देपत दुनौ
सिशनी। हरि विरेचि रपुर सोभाकुणि की सलपुरो लुभानो॥
आनंद भवनिराजरवनी सब सागह कोपि जुडानी । आसिपय
ददे सराटददिं सादर उमा रमा ब्रह्मान ॥ १०॥ विभवविलार
वादि दसरथकौ देपि म निनहिं सोदानी । कौरति कुसल भरि
जय रिषि सिधि तिन्ह पर सबे कीहानी ॥ ११ ॥ छठी बारह
लोकवेदविधि करि मुविधानविधानौ । राम लपन रिपुद्मग
मर्त घरे नाम ललित गुरन्नानौ ॥ २२॥ सुक्तत सुमन तिरं
मोद बसि विधि जतन उंच भरि -घानी। सुपसनेष सव
दियो दसरथद्टिं परि पेल थिर धानी ॥१३॥ अनुदिन
उदय उछाइ उसग जग घरघर अवधकंडानी। तुलसरू
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