अरबी काव्य-दर्शन | Arabi Kavya-darshan

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Arabi Kavya-darshan by महेश प्रसाद - Mahesh prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-प्रवश 1 নি सौरानामोन श्ना, जा किमे आदस्णीय रम्याद्‌ द दौर जिनकी योग्यतारू विपये क्वरिल इतना द्वी फह्द देना पाम टै ङि दोनों माननीय मौलाना सहवान पंजाब विश्व विशरानयपः धोरिरु्टन् काटिज, टौ मौर्वी जआलिम और মীলগ্ষা फ्राशिल कर्थाव अरथीकी उच्च श्रेणियोंके अध्यापक हे । यधाप मन अनुवाद का यथाशक्ति ম্যাম ছা रक्रा है, सथथापि कही कही आयइयकनामसुसार टोकानटिप्पणी भी फर दी है जिसमें उन लोगों फी जो अरपी और अरबोंसे बिलकुल अन* मिन् हैं, समझनेमें छेशमापन्न भी फठिनता न द।। फिर भी यदि पाठ निन्नीम्यव पत भ्यानने रक्देग ता निस्सन्देह अनु- वादे समने धद सुगमता दो जायगी:-- (१) अरब फजूसीको बहुत ही बुरा समझते थे । (२) अरय एक घहुत गरम देश है। दिनके समय बह्दों আগা फरना कठिन द्वोता था। इसलिये छोम प्रायः रात्रिमे यात्रा करते थे । किन्तु रेतमें राह भूलना साधारणसी बात थी। ऐसे यात्रियोंकी सुगमताके लिये गृदस्थोंके यहाँ अ्प्रि जलाइ जाती थी। परन्तु ऐसी अप्रि उसीके यहों जलती थी जो अतिथि-सेवी दता था ! आपंतुकाको अच्छी तष्ट सेवा करना और उनको उत्तम खानपानसे मुख देना पडा पयित्र, मद्दकत्त्वपूर्ण वथा प्रशंसनीय काये समझा जाता था । जो गस्य ऐसे अपरिचित आगन्तुकोंढी सेबामें किसी प्रकारकी कसर करता था चद्द अच्छा नई समझा जाता था। जिसके द्वास्से आगेतुक रुष्ट होकर जाते थे यह अति निन्दनीय होवा या । साथ ही इसके यद्द भी जान लेना चाहिए हि प्राचीन अरवमे




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