मुक्तिवाहिनी विजयवाहिनी | Muktivahini Vijayvahini
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)# कारसो प्रमाद निह
अभियान-गीत
नवयुग का मंगल शंसा बजा,
जन-जन वा गूंज उठा अन्तर,
जब भारत को जनशक्ति जगी,
घण-कण के मन में उठी लहर ।
पापाण-शिलाएँ শী দিনে को,
जागरण-मन्त्र से जाग उठी।
निधू'म अग्नि को ज्वालाएँ,
आलस-निद्राको त्याग उटी।
जो मलयानिल वन वहता ঘা,
वह प्रलयकर तूफान हमा।
चल पड़े तरुण ले विजय-ध्वजा,
बलि के पथ पर आह्वान हुआ ॥
चल षडे जिधर से वौर-चरण,
बन गया उधर हो पथ दुजंय।
सागर में तैर चते पव॑त,
पव॑त समतल दो शयां सदय \\
रण रंगमच को ओर अभय,
भारत जननी के लाल बेदे।
करवाल उठाकर कोटि-कोरि,
বালী कै कात कराल बढे॥
ভুল শী भीम-समान हुआ,
तिनका भी पावक-वाण हुआ |
चल पडे तरुण ले विजय-घ्वजा,
बलि के प पर आह्वान ~
विजयवाहिनो
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