महाप्रस्थान के पथ पर | Mahaprasthan Ke Path Par

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Mahaprasthan Ke Path Par by रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravindra Nath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महाप्रस्गन के पथ्‌ प्र ५ & षं £ चेहरा होता है. पद्मासन यो तरह उस पर चेठा जाता हैं. इससे मार्ग का परिभम ते चच जाता है. सन्तु 'पाराम नहीं मिचता। पदले-पढले तो याश्नियो के इत्य में उत्साह होता हूं, पर चार-छ' दइन बार उनकी चान মল द्दो जाती 1 कमर्‌ लेगा कर चलने लयत्ता ह्‌ कोई ঘা रह्‌ जाता है कोई बीमार हो जाता है, कसी को चलने से घृणा हो जाती हैं, 'पोर कोई दापस चला जाना षह) निस पदले स्वस्थ, सचल, पसनन्‍नचित्त स्मर सिट्सारी देखा धा-चक्षई दिनो के दाद उसके शरीर को दुचला- पतला, धूल आर धूप से सन्तिन देखा, करुण-क्ञातर दृए हूं। शायद चलने से उनके पाँदो मे दद रहता है, मुझ ओर आंखों पर पप्रराभाविक विरष्णा है जोर त्यन्त चिड्चिडा स्वभाव हो गया हे 1 पास खड़ देने स उर लगता है। यात्रियो की यह अवस्था कनी समस्ते हे रसलिए जो देष्र कुली होने र. उनकी पीठ पर खाली क्ार्डी रूलती रहती है, कई दिनो तक धैेयपू्रेक दे यात्रियों के ऋूण्डो के पीछे-पीछे चलन है। फिर देखा जाता है धीरेपीरे एक-एक करके उनके खरीदार मिल ग है. तच या्नियो चष गरल ससभ्तकर इरी चहुत किराया मौरते हे, खोर खिर लाचार चेक्र याधरियो क्यो उेना ही पड़ता है। गज घुरी बला है -खमाज व्ी तरह चोरी-डकेतो आदि छुद्द नहीं तरप याच निरय होता हे। छुल्ली दिश्दासी च लर सरल महि होता है, कन्तु ३ दिचाठ करेगे पर धूनैता नहीं क्रमे! नस ৯ ক ~ गरीदी श ১ ১৯৯ লী হী या चे गराद हा हे प्र रर्‌ তল ইত को क्लुपित्त मह्‌ रता} ते 2 1 2 4 # ১ 3, उत्तराखरड चौ सामाजे क्नारे-क्निरे हमारा सागे है) इस तरफ লিটল বতন্ধাল, জাই জজ লী হী उख पार दिहरी-गट्दानं है। ঈহবালা হাজ্য ৯ হী লাললাল ক কিত্‌ হ্বাধীল है! गया, जन जोर सन्‍्दाजिनी ही साधारणता इस राज्य री निर्दिष्ट सीसाएँ दाकियो ভর শাহ হী ঘা লাল জক ইন্বাহ তং হিল শু ^ | ১৫17 417 গে প্‌ ১০1 4744 এ ই সালীঘ लोग सनी स्ारे-पीते कटे जा सकने हू। सभी क्सिन हैं | प पहाड़ी टर्‌ उमोन ল स्पाय ऊे दोतों को तरह रेस জাভশ্লুহ ভাজ ই गोभी सरसो आदि पेदा हो जाती है| उच्च मे जे युद्ा हैं ऋयदा दोस = [9 तेन खन्न नीचे मानो वल्कम्‌ य वथ धत छोर पाड বল লীন को अपन में नीचे सार्ों ০১ ৯২ = चंद = বু >> च्ल 2৯১ হালা ২ प्र উহ ব্য হ-- হারে জা হালিহা জু न स्वर्‌ चाभ र ध ९




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