हिंदी ही क्यों | Hindi Hi Kyo

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Hindi Hi Kyo by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 4 को तो एक विशेष शैली ही है--तो क्या उखे व्गलसे भिन्न एक माषा छदना उचिते होगा १ कौर, जायसी, रदीम, रसान भादि युसटमान दी ये छ्न्ठ उनके सामने हिन्दी उदे भेदको समस्या तो कमी नदी जद । अकबरके युके भरी फारसी शब्दोंकों गोस्वामी तुलसीदासजोने रामायणमें एवं अपनो अन्य रचनाओमें प्रदण कर च्या तो कया रामायणो हिन्दीकी संपत्ति नहीं कद्दो जाय? “गरीब” 'नेवाज आदि उनके बड़े प्रसिद्ध शब्द हैं, फ़ारसी अस्वीके द्वोते हुए भी वे दिन्दोके हैँ, क्योंकि वे ठसमें खप गए, उसके शब्द भण्डारमें भा गए, और दौडी विशेषके रूपभे प्रयुक्त भी द्वोने लगे । «साम्प्रदायिक भगडेके पल्लेमें घाधकर द्विन्दी और उदृको समस्याको निरर्थक पश्य दे दिया गया । सममौतेकी नींव पर 'द्विन्दुस्तानी' नामको शरण भी ली गई। किन्तु घात घननेकी अपेक्षा विगड़ती ही चली गई। हिन्दुस्तान तो वास्तविरन रूपमे दिनदस्तागकी भाषाको कद सकते हैं, जैसा कि नेदल्गीने क्दा दै! * इन दिनो 'हिनदुप्तानी' नाम एक विशेष भौमे अयुक्त सिया जाने ल्पा है 1 दिन्दीमे छअरदी, फारसी शब्द सम्प्रदाय विशेषक्ञी तुश्कि लिये भरे जाने छगे। बापूकी सरलता एवं निष्कपटताकी आइमें कुछ लोगनि अपनो प्रमुखताके लिये इप झआान्दोलनढ़ी संध्टि की । राजनीति क्षेत्रमं सममकत। किया जा सकता है, किन्तु जब संश्कृतिका प्रश्न भाता है तो विषय विचारणीय हो उठता है। राजनोति परिवततेनशील है संसृति चिरन्तन दै । चिरन्तनका अभाव स्यायो रोता है। स्थायी व्यापारो किसी प्रकारका भदेश अथवा चलश्रयोग द्वितकारी नहीं होता है। संस्कृति, भाषा, सभ्यता भादि जिनका सम्बन्ध मानसि जगतसे रदता है उनका भवाई खच्छन्द दता है। उसमें किस्तो प्रकारका भत्वाभाविक बन्धन स्दणीय नदीं है भन्पनकी प्रतिक्रिया जय उसमें होती दे तब बांघ तोड़कर आसपासको चौजोंकोी भी बहा छे जाती है । कोतिनाशा उत्तारतरद्रपू्ण गङ्गाका शूप धारण कर लेती दै ! जिस प्रकार नदो बड़े-बड्ढे पदा़ेंकी कठौर घट्टानोंको काटती हुई, उबड़-खाबड़ जमोनके चीचसे ># दिन्दुप्तानरौ दानी (1800४९४९ ০? 10110) সী ।




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