चैत्यवंदन चतुर्विन्शतिका | Chaityavandan-chturvinshtika

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Chaityavandan-chturvinshtika by क्षमा कल्याणक - Kshama Kalyanak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{११ ) आपके पद्मशिप्प ६९ दें पद्ुथर चाननाचार्य श्री अमूत्तपर्मजी पहाराज ई हमारे चरितनापक के आदि प्रतियोधक शुरु देव थे । ॥ विद्याभ्यासः ॥ श्री राजसोमाद परिमलेन चेतसो- पाध्यायताऽप्ता पटितुं प्रचक्रमे । निप्यं पटन्‌ सकषदशोन्मितै चभ, श्रीमान्‌ सर्तीष्य: किलसंयमेरिव ॥ १४ ॥ खरतरगन्छ फी थ्री क्षमफीर्ति शाया मं १८ वीं शताब्दी में उपा० भ्रीलश्ष्मीवष्ठमजी हुए उनके गुरु आता बाच ० मोमहर्पजी फे शिप्प वाच० उक्ष्मीमप्॒द्रके शिष्य उपा० कपूरतियजी के शिष्य प्रौड विद्वन महामहोपाष्याय भ्रीगजमोम जी महाराज के पास हपारं चरित नायकने निमेठ सिनसे विनयपूर्वक सतरह प्रकार के मयम भे्दा के जैसे सतरह सहाध्यायियों के साथ लक्षण-स्पाय- आगय आदिकों ा रटने दृण अद्वितीय विष्ठा प्राप्त दी थी । पहामहा० श्रीगज़ सोगजी के जसे उसी पाया के संस्कृत प्राकृत और गजम्धानी आदि मापाओं के विश्विएं कवि पर्मन्न भिरोभणि उपा० गमविजयर्ज प्रसिद्ध नाम श्री रूपचद्रजी मे भी आपने अच्छी योग्यता हासिल की थी ।




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