आर्य सिद्धांत दीप | Arya Sidhant Deep

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_ आर्यसिद्धान्त-दीप संमुन्नत करके उसका अभ्युदय ऋौर निःभेयस करने वाले मानव- सके प्रचार के निमित्त महिं दृयानन्द ने उत्तम ইরান (विश्वनागरिक) सैनिकों का एक संगठन बनाया, जो आर्येप्तमाज नाम से जगत में प्रसिद्ध दै। + इस दिन्य दृष्टि कौ उपलम्थि उन्हे तपः-साप्याय कएने के पश्चात्‌ वेदों द्वारा मिली । इसलिये उन्दने इसे श्राधाए भर मानवधर्म शीर मानव संति का .भचार्‌ आ्रसम्भ किया! इसी का दूसरा भाम ऋषि-मार्ग या आये-धर्म है। इसी स्तां मार्ग को महाभारतकार मे शा्॑विधि, श्रुति व भ्रीतपन्धा नाम दिया है। महपिं का वैदिक धर्म”,.ब आये संस्कृति! में हदक था । उनकी इन्छा थी कि संमार मे पुनः मेद्रतिफादित मान्यः धर्म का प्रचारो । ~ इसके लिये उन्होंने अनेक कष्ट, हे भरतिफल मे उन्हे नौ वार विदान मी दिया गया और, पे ५ प्रणा, वित्तैषण और लोकैषणा से ऊपर उठा मपि भ = व्या कौ श्र्ेरी रात में चुपचाप महाप्रयाण कर'रंया। উর सष के ভুন জান ঈ अन्धकाराबृत था और जनहेंदेय श्ल ০৪ प्रतिभाशाली सूर्य के दिवंगत हो जाने मे शोकपूर्ण था ।. ৯ म्पि को सृध्यु के उपरान्त आयेसमाज ने ऋषि ¢ मागा *श्रतुसरण कर वेदप्रतिपादित उन पवित्र & मतः में प्रचार किया, जिनको संसार भूल चुका या शरीर सम्‌, मलान्तर्‌ জনা विक्ृत अबरोेप-हैं। इस सभय माप ध अन्यत्र आर्यसमाजो की संख्या चार हजार রক पहुंच चुकी রি भारतवर्ष से बाहर अफ्रीफा, फिजी, मौरिशस। #र श अफगानिस्तान, प्राऊिस्तान, बलोचिम्तान, मेसोपटामिया, रीः स्थि. जमनी, इ'्लैणड, त्िटिरागाथना अमेरिकी) तिगे व स्याम, अनाम, वस्बोडिय्रा, हांगकांग) चीन और येडधगाम्द अदि नाना ঈহী में भी आर्वप्तमाज स्थापित हैं ।




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