भारतीय सृष्टिविद्या | Bharatiy Srishtividya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जेन सुष्टिदल्नि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पुराणों के अनुसार इस समय ब्रह्माजी को शतायु के पत्रास वर्ष ( एक पराधे ) व्यतीत हो चुके टै । सम्प्रति उनके इक्यावनवें वषं का दवेतवाराहु-कल्प नामकं प्रथम दिवस चरू रहा है ।` इस दिषस के प्रारम्भ मे उनके शरीर से स्वायम्तुव नामक प्रथम मनु उत्यन्त हुमा था 1 बहु अद्यमानव अर्थात्‌ प्रथम मनु हस कल्प के पहले मम्बम्तर का संस्थापक था । उसने मरीचि प्रमुख अचरि, अंगिरस, वशिष्ठ भादि सप्तपियों क साथ मिलकर इस मारतभूमि पर वेदयज्ञ धर्म कौ संस्थापना पहली बार फी थी । बेदोदारक सप्तयो ने विवाह, मग्निहोत्र तथा ऋग्यजुःसामवेद का त्रयीमय धमं प्रवर्तित किया जव कि स्वायम्भुव मनुने चार वर्णों की स्थापना करके चार आश्रमबारे लोकघर्म की स्थापना की थो, युराणों में ऋवि-्यर्वातित धर्म श्रौत तथा मनुन्यवर्तित धर्म स्मार्त धर्म कहलाता है इन स्वायम्भुव मनु के काल में ही यज्ञ धर्म का प्रवर्तन हुआ | तब यज्ञ का उद्देश्य वर्षा को प्राप्त करता था और वह यज्ञ दुग्धादि ओषधियों से ही सम्पन्न होता था। कालान्तर में जब सब लोग गृहस्थ धर्म में प्रतिष्ठित हो गये तब राजा बसु ने पशुहिसा-प्रधान अदवमेध आदि यज्ञों का प्रवर्तन किया। पुराण कहते हैं कि हिंसा- १. बिण्णु० १३२८ द्वितीयस्य पराधस्य बतंमानस्य बे द्विज । बाराह इति कल्पोऽयं प्रथमः परिकीतितः ॥ संकल्पबाक्य : ऊँ तत सत्‌ । আহা अह्मणों द्वितीयपराधें श्रोश्वेतवाराहकल्पे...। हृत्यादि । २० बिच्णु० ३1१६८ है स्वायंभुबो मनुः पूब**-। स्वायंभुब॑ तु कथितं कक्पादाबन्तर ,..1 ३. बायु० /७३६-४१, ६० तत्र त्रेतायुगस्यादौ मनुः सप्ठ्षं बश्च ते । श्रौत स्मार्त च धमं च ्रह्मणा च प्रचोरितमू 1 दाराग्निहीत्रं संयोममूग्पजुःसामसंङितय्‌ । इत्याविरक्तमं श्रौतं धनं सपरदयोऽम्‌ बह ॥ परम्परागत धर्म स्मा्त चाचारशक्षणस्‌ । बर्गानां प्रबिभागश्च जेतायां संपक्री लिता: । संहिताश्च ततो मस्त्रा ऋषिभिज हिण स्तु ते 1 जैन सृष्टिदर्शन ३




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