साधना सूत्र | Sadhna Sutra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sadhna Sutra  by आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

Read More About Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
८ साधर्ना-तूत्र के ढेर पर चढ़ने में सफल न होंगे, वे बड़े हैं। वह जन्मो-जन्मों की आपकी मेहनत है, आपने दुःख के सिवाय कमी कुछ कमाया नहीं है। आप अभी भी कमा रहे हैं। मैं आपसे चाहूंगा कि आप दुःख छोड़ दें, आप दुःख का त्याग कर दें। कोई आपसे दुःख मागता नही, मै आपसे दुःख मागता हूं! ओर अगर आप दुःख देः सरके, तो आनन्द के लिए रास्ता निर्मित हो सके। और अगर आप दुःख छोड़ सकें, तो आपको पता लगे कि जो आप सोचते थे कि आप दुःख में जी रहे हैं, बह आपकी भ्रान्ति थी। दुःख ने आपको नहीं पकड़ा था, आपने ही दुःख को पकड़ा हुआ था। मगर एक बार छोड़ें, तो ही पता चलेगा कि कौन किसको पकड़े हुए था। आप सदा यही पूछते रहते हैं कि दुःख से कैसे छुटकारा हो! आपकी बातों से ऐसा लगता है कि जैसे दुःख ने आपको पकड़ा है, और छुटकारा चाहिए। अगर दुःख आपको पकड़े हुए है, तो फिर आप छूट न पाएंगे। फिर पकड़ ही आपके हाथ में नहीं है, दुःख के हाथ में है। फिर तो आप विवश हैं, असहाय हैं। और जन्मों-जन्मों से नहीं छूट पाए, हैं, तो अब कैसे छूट जाइएगा ! ४ मैं आपसे कहता हूं कि दुःख ने आपको नहीं पकड़ा हुआ है, आप दुःख को पकड़े हुए हैं। और अगर आप राजी हुए, तो आपको यह समझ में आ जायेगा। न केवल समझ में, बल्कि आप छोड़कर भी अनुभव कर लेंगे कि यह छूटता है। और जब आप दुःख को छोड़ने की कला में कुशल हो जाते हैं, तब आपको पता लगता दे कि जो भी ढो रहे थे, उसके लिए आपके अतिरिक्त और कोई जिम्सेवार नहीं था। और आपने जो भी भोगा है, कोई और कसूरवार नहीं है--यह आपकी मर्जी थी, आप दुःख चाहते थे। जो हम चाहते हैं, वही होता है। और जो भी आप हैं, आप अपनी बाहों का फल हैं। न तो कोई परमात्मा जिम्मेवार है, न तो कोई भाग्य जिम्सेवार है; किसी को प्रयोजन नहीं है आपको दुःखी करने के लिए। , स्व तो यह्‌ है फि यह पूरा अस्तित्वे आपको आनन्दित करने के लिए तत्पर है। यह पूरा अस्तित्व चाहता है कि आपका जीवन एक ठत्सव बन जाये। क्योंकि जब आप दुःखी होते हैं, तो आप चारों तरफ दुःख भी फेंकते हैं। जब आप दुःखी होते हैं तो आपके घाव की दुर्गन्‍्ध सारे अस्तित्व में पहुंचती है। और जत्न आप दुःखी होते हैं तो यह अस्तित्व भी पीड़ा पाता है। यह सारा जगत आपके साथ पीड़ित होता है और आपके आनन्द के साथ आनन्दित द्दोता है। कोई अस्तित्व की चाह नहीं है कि आप दुःखी हों। क्योंकि यह तो अस्तित्व के लिए ही आत्मघात है। और आप दुःखी हैं और दुःखी होने में आपने कुछ व्यवस्था बना रखी है। और उस व्यवस्था को आप जब तक न तोड़ दें, तब तक आप कभी भी आनन्द की तरफ़ आंख न खोल पायेंगे! आपकी व्यवस्था कया हैं! मनुष्य की व्यवस्था कया है, दुःख संग्रहीत करने की!




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now