वर्णी वाणी | Varni Vani

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : वर्णी वाणी  - Varni Vani

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नरेन्द्र जैन - Narendra Jain

Add Infomation AboutNarendra Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ५० ) अध्यात्मवाद का सही अथ हैं जड़ चेतन सबकी स्वतन्त्र सत्ता स्वीकारं करना भौर कार्यकारण भावको सहयोग प्रणांकी के जाचार पर स्वीकार करके व्यक्ति की स्वसन्त्रता को आंच न नाने देना । यदि इम हस आधारसे विक्ष्वकी ग्यवम्था करने के किमि कश्बिद्ध हो जाते हैं तो संसार को समस्त बुराइयाँ खुतरां हुर हो जाती ह शान्ति भौर सुष्यवस्था के साथ मानव मात्र को प्रत्येक क्षेत्र में समानता के अधिकार मिछें, कोई जाति पिछड़ी हुई, अछूृत और अशिक्षित ন ₹ছুন पवि, सियो ক্ঞা অজলাল জ্ঞান্কীন আযহা জনক্ঘা से उद्धार होकर पुरुषों के समान ये नागरिकता के सभ अधिकार प्राप्त करें, सांप्रदायिकता का उन्म्रुछन होकर उसके स्थान में बन्घुत्व की सावना जाग्रत हो और वतमान कालीन आर्थिक व्यवस्था का अन्त होकर सर्वोप्योगी नयी व्यवस्था का निर्माण हो ये वर्तमान फार्ल,न समस्‍यायें हैः जिनके ह करने मे अध्यात्मवाद परणं समथ हे । पाठकों को वर्शो वाणी का इस दुष्टिकोश से स्वाध्याय करना चाहिये। मेरी इच्छा थी कि इसके कुछ चुने हुये वाक्य यादे दिये जाते किन्तु जब मैं वाक्यें को चुनने के छिये उद्यत होता हूँ तब यह निरणंय ही नहीं कर पाता कि किन वाश्यांको किया जाय और किन्हें छोड़ा जाय | इसके भत्येक वाक्य से जीवन संशोघन की शिक्षा मिछती हे। बिइव के साहित्य में इसे तामिक्ष वेद को उपभा दी जा सकती है। इसके एक एक वाक्य सें अस्त भरा पड़ा ই। पृज्य श्री वर्णी जी ने अपने जीवन में सब खमस्थाभों पर बिचार किया हे ओर अपने पुनीत उपदेशों द्वारा उन पर प्रकाश डाछा हे। यह उन उपदेशों का पिटारा है। इससे इमे स्वतन्त्रता त्याग, बहिदान, सेवा, कतष्यपरायणता, उदासीनता, अद्रा, अच्छि, मानवध्र्म, सफछता के साधन आदि सभी उपयोगी विषयोकी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now