श्री ब्रह्मगुलाल चरित | Shri Brahmagulal Charit

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Shri Brahmagulal Charit by बनवारीलाल स्याद्वादी - Banwarilal Syadwadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूमिका लगभग पौने चारसौ वर्ष पूर्व फीरोजाबाद के निकट তাত नामक ग्राम त्र फीरोजाबाद के निकट 'टापे' नामक ग्राम में कविवर ब्रह्गललल का जन्म हश्ना था। वह महाकवि तुलसीदास और हिन्दी के सर्वप्रमुख आत्मचरित लेखक कविवर बनारसी दास जैन के समकालीन थे । उन्होने कई ग्रन्थों की रचना की थी, जिनमे केवल एक प्रकाशित, हुआ है यानी “कृपण जगावन चरित्र”। उन्ही ब्रह्मगुलाल जी के जीवन चरित की रचना छत्रपति जी ने सम्बत्‌ १६०६ मे की थी और बन्धुवर बनवारीलाल स्याद्रादी ने बडी योग्यतापूर्वक उसका सम्पादन किया है । छत्रपति जी अवागढ के रहने वाले थे और सम्पादक महोदय ने खोज करके उनका सक्षिप्त परिचय इस ग्रन्थ की भूमिका मे दे दिया है। श्री छत्र- पति जी एक आदर्शवादी लेखक थे और उन्होने धन-सचय की ओर कुछ भी ध्यात नहीं दिया । अपनी शारीरिक आवश्यकताञ्रों के लिए पाँच आने पैसे जमाकर शेप वे परोपकारार्थ खर्च कर देते थे वह अभ्रपनी दूकान एक घन्टे से अधिक के लिए नही खोलते थे ओर एक रुपया रोज से ज्यादा नही कमाते थे उनका शेप समय धामिक कृत्य तथा साहित्य सेवा मे बीतता था । कविवर ब्रह्मगुलाल जी का जीवनचरित उपन्यास की तरह मनोरजक है और छत्रपति जी ने उसे बडी सरल भाषा मे लिखा है। यह बडे खेद की बात है कि न तो श्री ब्रह्मगुलाल जी की श्रीर न छत्रपति जी की समस्त रचनाएँ प्रकाश मे आ सकी । जनपदीय लेखको और कवियो की कीतिरक्षा का उपाय कया है ? इस प्रदान पर विचार करके हम इस परिणाम पर पहुँचे हैं कि अखिल भारतीय सस्थाएँ-- उदाहरणार्थ हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग और नागरी प्रचारिणी




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