झांसी की रानी - लक्ष्मीबाई | Jhansi Ki Rani - Laxmibai

Jhansi Ki Rani - Laxmibai by सी० एस० आचार्य - C. S. Aacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना ६५ ৮ শি | रनुनाथगव के उपरान्त गन्यकरे लिए चार मुख्य दायर खड दप --गङ्गाधरराव (भाई), कृष्णराव (रम॑चद्रयव का कथित दत्तक पुत्र), अलीबहादुर और रघुनाथराव की विधवा रानी । क्ृष्एगत्र की पीठ पर सखूबाई थी। बन्‍्दीयृह के जावन ने ` सनुतरा का दमन नहीं कर पाया था, प्रत्युत वह श्रधिक सतक, सतेज ओर गनकीली हो गई शी | रघुनाथराव की ग्रन््यष्ठिक्रिया्णैभी सङ्गिषह्ग न हापरईिर्थीं ति सखूबाई ते क्रते परर श्रधिकार कर लिया, खज्ञने पर ग्रपने संरी শিতলা द्र, लोपों पर्‌ पते तोपलियों को ओर सिजदख।ने पर अपने सिलेदारों की नियुक्त कर दिया | गड़ाधरराब शहर वाले महत्न में थे। उनको ऐसा लगता খা जैस अपने ही घर में क्रेद हों | सखूबाई को केंद करने का नि्शंय जिन लोगों ने दिया था, उनमें गड्ाधरराब भी थे । सखूबाई की प्रतिदिसा के मय से ओर साधनहीन होने के कारण गन्लाधरराब झांसी से भागे और अंग्रेज़ों के पास सीचर फानपृर पहुंचे। उस समय कानपूर अंग्रेज़ों की बढ़ी हुई शक्ति का काफ़ी बड़ा अड्डा था | ग्लीवहादुर ने करेरा के दुर्ग में शरण ली ओर बह वहां से सेन्य- मंग्रह करने लगे |- उस समय मध्यभारत के लिए. गवर्नर-जनरल का एजेण्ट साइमन फ्रेज़र था--सन्‌ १८५७ के बिल्ववकाल मं यह आगर का लेफिटिनिणट गवरनर होगया था | इस गड़बड़ की ख़बर पाकर फ्रेज़र फांसी आया | कम्पनी सरकार के प्रबल सद्भडन और बल के आतझूु ने उसके कर्मचारियों को उद्धत बना दिया था । वह दो-एक चोबदारों को लेकर सखूबाई के पास क्रिल में पहुँचा और उसने सखू को धमकाया | सख ने कोई परवाह नहीं की |




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