अपने समय में जीना | Apane Samay Me Jeena

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Apane Samay Me Jeena by विनोद शर्मा - Vinod Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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में व्यक्त भयावहता को कवितानुभव में बदलने की प्रक्रिया में, कल्पना, स्मृति और संवेदनशीलता से उनकी कारयित्री प्रतिभा ने कितनी निपुणता से काम लिया-इसका अन्दाजा उनकी कविता के स्टैनली कुनिट्ज कृत अंग्रेजी अनुवाद और नीचे दी गई मेरी हिन्दी पुनर्रचना पढ़कर सहज ही लगाया जा सकता है- मैं गोया हूं / नंगे मैदान का / कोटरों से आंखों के » फट पड़ने तक » दुश्मन की चोंच से / नोचा गया हूं » मैं दुःख हूं। मैं जुबान हूं युद्ध की / सन्‌ इकतालीस की » बर्फ पर विखरे हुए » शहरों के अंगारों की » मैं भूख हूं मैं गर्दन हूं / फांसी चढ़ी औरत की / घनघनाती रही / जिसकी लाश » सूने चौक में घंटे की तरह » मैं गोया हूँ ओ प्रतिशोध की बौछार! उछाल दी है मैंने » पश्चिम की ओर » अनाहूत मेहमानों की राख और कीलों की तरह/ टक दिए हैँ तारे” आक्रांत आकाश में » मैं गोया हूं । 16




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