हमारे संस्कार-सूत्र | Hamare Sanskar-Sutra

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Hamare Sanskar-Sutra by लक्ष्मीराम शास्त्री - Lakshmiram Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धमं ७ धारण करने कै कारण उसे “धर्म” कहा जाता है। धर्म ने ही सारी प्रजा को टिका रखा--धारण किया हुआ है। धारण करने की शक्ति- वाला ही घमं है। धर्मे यत्नः सदा कार्यो धमं एकः सुखावहः । धर्मेण पाल्यते सर्वं न्रैलतेक्यं सचराचरम्‌ ।1 (वि० ध० ३।२५५) धमं की प्रवरृत्तियो मे निरन्तर लगे रहना चाहिए । धर्म ही एक अकेला सुख देनेवाला है । घमं के हारा ही चर-अचर.सहित तीनो लोको की रक्षा होती है । एक एव सुहृद्धमों निधनेध्प्यनचुयाति यः । शरीरेण समं नाश सर्वसन्‍्यत्तु गच्छति ॥ (स० स्मृ० ८] १७) घ्म ही सुहृद्‌ (मित्र) है । मृत्यु के वाद वही जीव के साथ जाता दहै, अन्य वस्तुए तो शरीर के साथ यही नप्ट हो जाती है । आधिव्याधिपरीताय भ्रद्य इवो वा विनाहिते। को हि नाम शरीराय धर्मापेत समाचरेत्‌ ॥ (का० नी० ३।६)} यह शरीर नाशवान है। आज या करू इसका नाथ अवच्य होगा । आधि और व्याधि से यह घिरा हुआ है। ऐसे गरीर के लिए घमं-रहित आचरण भला कौन करेगा ? त जातु कासान्त भयान्‍्त लोभा- दमं त्यजेज्जीवितस्थापि हेतो: ।




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