हमारे संस्कार-सूत्र | Hamare Sanskar-Sutra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धमं ७
धारण करने कै कारण उसे “धर्म” कहा जाता है। धर्म ने ही सारी
प्रजा को टिका रखा--धारण किया हुआ है। धारण करने की शक्ति-
वाला ही घमं है।
धर्मे यत्नः सदा कार्यो धमं एकः सुखावहः ।
धर्मेण पाल्यते सर्वं न्रैलतेक्यं सचराचरम् ।1
(वि० ध० ३।२५५)
धमं की प्रवरृत्तियो मे निरन्तर लगे रहना चाहिए । धर्म ही एक
अकेला सुख देनेवाला है । घमं के हारा ही चर-अचर.सहित तीनो लोको
की रक्षा होती है ।
एक एव सुहृद्धमों निधनेध्प्यनचुयाति यः ।
शरीरेण समं नाश सर्वसन््यत्तु गच्छति ॥
(स० स्मृ० ८] १७)
घ्म ही सुहृद् (मित्र) है । मृत्यु के वाद वही जीव के साथ जाता दहै,
अन्य वस्तुए तो शरीर के साथ यही नप्ट हो जाती है ।
आधिव्याधिपरीताय भ्रद्य इवो वा विनाहिते।
को हि नाम शरीराय धर्मापेत समाचरेत् ॥
(का० नी० ३।६)}
यह शरीर नाशवान है। आज या करू इसका नाथ अवच्य होगा ।
आधि और व्याधि से यह घिरा हुआ है। ऐसे गरीर के लिए घमं-रहित
आचरण भला कौन करेगा ?
त जातु कासान्त भयान््त लोभा-
दमं त्यजेज्जीवितस्थापि हेतो: ।
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