दिगम्बर जैन सिद्धांत दर्पण | Digambar Jain Siddhant Darpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
41 MB
कुल पष्ठ :
392
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामप्रसाद शास्त्री - Ramprasad Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विश्वब्रन्थ श्री १८०्द८ भगवान मद्दावीर के मुक्त
है| जाने पर उनका शासनभार संसार व्रिरक्त, जगन-
हिनेपी तपाथन विहान आचार्य महाराजों रे, उपर
आया । उन्हांन विश्व कल्याण क पिये भावना
लेन सिफ जैन शासन की रज्ा की अपितु उसका
हूते भार व्यापक प्रचार भी किया । इसके सितरतय
उन्होंने भविष्य में जंनसिद्धान्त को सुरक्षित रखन
के दूरदर्शी विचार से अनेक श्रमूल्य प्रन्थरत्नों की
रचना भी को जिनके कारण आज़ भी भगवान
महावीर का दिव्य उपदेश हमका पढ़न सुनने को
मिल्ञता दे ,।
यमाप आाग्हबर्पी अकाल के कारण जैन संध के
दो भाग दी गये थे ओर विपदृप्रन्त साधुश्रां #
शिथिज्ञाचार फेलन लगा था परन्तु भारयोदय स
यम् ज्राड् समय में श्री कुंदकुंदाचाय जेल अलाफिक
तपस्त) भ्रमर हण उन््हों ने भगवान महात्रीग के शा-
सन का बागइर सम्भालाी आर फेलन वाल হানি,
আান্বাৰ को बड़ी कड़ा स रोककर प्राचीन जैन-
साक्ाति को रक्ता का | श्री कुल्दकुल्दाचाय के!
तेपाबल जहा असारम् शा जिसके कारण ३
पहु चकर भगवान
दशन कर यथ,
बहां उनका खेद्धा न्तिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान मण्टार
নল জন में हंबी सहायता से
सामन्धर म्बामा ऋ सान्ता
भी बहुत विशाल था, उनकी वाणी में अतिशय था
श्रीर उनकी लेखनी अद्भुत शक्ति रखती थी, इसी
करण उन्होंने जिन 'सप्रयमारा श्रादि प्रन््थों की
रचना की द्वे वे अनुपम हैं। उनकी इस अनुपस
रचना का अनुमान इसी पर स लगाया जां सकता है
कि जिस काटियाबाड़ प्रान्त में आज से २०-२४ ब्रप
पहल भ्री कुन्दकुन्शचाय को मानन बाला एक भी
व्यक्ति नर था उसी काठियाबाड़ में श्रंकान जी ऋषि
द्वारा समयसार का प्रवचन सुनकर दज़ारों व्यक्ति
श्री कुदकुदाचाय के भक्त बन गये हैं ।
किन्तु यह् मी कुद समय का प्रभाव दे कि ठन
ही कन्दङन्दाचाय॑ को भाज प्रॉफेसर द्वीराज्ञाल जी
कमममद्धान्तस अनभिज्न, शअसत्पक्षपाती, अप्राभा-
णिक बतलान का साहस कर बहू है ।
हम नदीं चाहते कि दिगम्बर जैन समाज क
शान्त आातावरण को अशांत बसाया जाय किन्तु जैन
समाजका दुर्भाग्य दे जब कि घचलग्रन्थ के सम्पादनस
यश प्राप्त करने वाले प्रो० दीरात्ात जी न पर्देखंडा-
गम, भगवती आराधना आदि पुरावन आप मप्रंथों की
साक्षी देकर दिगम्बर जैन भाम्नाय की मूल मान्य-
ताओं पर हो कृठाराराधात किया तब बातावरणश
शांत कब रह सकता था |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...