गुरु भक्ति संग्रह | Guru Bhakti Sangrah

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Guru Bhakti Sangrah by फुलचंद जैन - Foolchand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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০ है कि वे इस টি का उपयोग अवश्य करें इससे अनंतानंत রি क्री श्रृंखला नष्ट हो अपने अनंत सुख की प्राप्ति हो इस पुस्तक का प्रकाशन करवाने वाले श्री धर्मचंद जी पाटौदी सीकर वाले वर्तमान में मुम्बई निवासी ने अपनी चंचल लक्ष्मी का सदुपयोग इस भक्ति पुस्तक में किया है उन्हें महाराज श्री का शुभाशीर्वाद है वे अपने धर्म की वृद्धि करते हुये अपने नाम के अनुसार धर्म को पूर्णर॒ुषेण स्वीकार मुक्तिपुर के पथिक बने परमपूज्य गुरुदेव श्री आचार्य सतशिरोमणि विद्यासागरजीके परम शिष्य मुनि श्री १०८ भूतबली सागर जी महाराज को हमारा शत्‌ शत्‌ वदन नमोऽस्तु जिन्होने इस पुस्तिका के माध्यम से नम्बई निवासियो एतं समस्त धर्मबधुओं को भक्तिरस का प्याला दिया है जिससे वे अनंतसुख के स्वामी बन स्के गुरुओं की महिमा कितनी भी गाये जाये कम है क्योकि गुरु स्वयं मे महान है ज्यादा क्या लिखू ` जिनके जीवन में गुरु नहीं । उसका जीवन शुरु नही । सब धरती कागज करु, लेखनी सन बनराम। सप्त समुंदर स्याही ছে गुरु गुण लिखे ना जाये । इन्ही शुभ मगलमय भावनाओं के साथ जगत्कल्याणेच्छक । प्रभु एव गुरु चरण रज चज्चरीक ब्र. मजुला




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