जैनतत्त्वकलिका | Jaintattvkalika

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jaintattvkalika by श्री आत्माराम जी - Sri Aatmaram Ji

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आत्माराम जी महाराज - Aatmaram Ji Maharaj

Add Infomation AboutAatmaram Ji Maharaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सम्पादकीय | १३ सब उदाहरणों पर से फलित होता है कि तत्त्व को अमुक संख्या मे बधा नहीं जा सकता । प्रत्येक वस्तु के साथ तत्त्व का प्रश्न अनुस्यृत है । तत्वों को संशया वास्तव में तत्वों की निश्चित संख्या नही है । तत्त्व कितने हैं ? इस प्रश्न का उत्तर आगरमों और विविध ग्रन्थों मे विभिन्न रूप से दिया है ! एक शैली के अनुसार तत्त्व दो हैं--१. जीब और २ अजीब | दूसरी शैली के अनुसार तत्त्व ७ हैं-- १. जीब, २. अजीव, ३ आस्रव ४, वन्ध, ५. सबर, ६ निजता और ७. मोक्ष । तीसरी शैली के अनुसार तत्वों की सख्या पुण्य और पाप महित नौ हैं। उत्तराष्ययन आदि आग्रम साहित्य मे तीसरी शैली उपलब्ध होती है। भगवती, प्रशापना आदि में जहाँ श्रावकों के ब्रतधारणोत्तर जीबन का वर्णन आता है, बहाँ ११ तत्वों के जानने का उल्लेख आता है | यथा--१. जीव, २. अजीच, ३. पुण्य, ४. पाप, ५. आख््रव ६. संवर ७. निर्जरा, ८५ क्रिया, £ अधिकरण १० बन्ध और ११ मोक्ष में कुशलता । वास्तव में तत्व दो ही हैं--जीव और अजीब । पुण्य से लेकर मोक्ष तक के सात तत्व स्वतन्नत्न नही हैं, वे जीव और अजीब के अवस्था-विशेष है । देव, गुरु ओर धर्म : तोन तत्व दूसरी दृष्टि से देखा जाए तो १. देव २. ग्रुर और ३. धर्म ये तीन तत्व मोक्षप्राप्ति मे सहायक एवं साधक है । देव और भुरु, ये जीव के ही मुक्त और कमंमुक्ति के लिए प्रयत्नशील, दो रूप है । अब रहा धमंतत्व--जिसमे सम्यग्दर्शन ज्ञान-चारित्र- रूप लोकोत्तर धमं तथा नीति-धर्म-प्रधान लोकिक धर्मों का समावेश हो जाता है। साथ ही शरुतधमं मे उपयु क्त नौ तत्व, षडद्रव्य, प्रमाण, नय, निक्षेपादि तथा परिणाभिनित्यवादं आदि सब तत्वो का समवि हो जात। है, चारित्रधमं मे अहिसा, सत्यादि सभी शाश्वतं धर्मो का समावेश हो जाता है । अस्तिकाय धमं मे परंचास्तिकाय, आत्मवाद, लोकवाद कमंबाद और क्रियावाद आदि का समावेश हो जाता है । देव और गुरु तत्व देवतत्व मोक्षसाघक के लिए इसलिए ग्राह्म है कि उसके बिना मुमुक्षु के सामने कोई आदर्श एवं व्यवहार का सेतु नही रहता । देवतत्व मे मोक्षप्राप्त सिद्ध या वीत- राग अहुन्त देव आते हैं, जो साधक की मोक्षयात्रा में प्रकाशस्तम्भ है और धुरुतत्व- जिसमे आचाय॑, उपाध्याय और साधु आते है, मोक्षार्थी के लिए मोक्षसाधना के आदर्शं है। इन दोनों तत्वों को अपनाये बिना पध्रमंतत्व को भलीभांति हृदयगम करना, जानता और आचरित करना कठिनतर है । इसलिए सबंतत्वों के तत्वश तथा तत्व- दर्शी देवाधिदेवों और धर्मदेवों गुरुओं का मार्यदर्शन घर्मंतत्थ को सर्वांगरूप से जानने हैतु नितान्त आवश्यक है। धर्मतत्वे को शाश्वत-अशाष्वत धारा इस विश्व में कुछ तत्व शाश्वत है और कुष्ठ॒ अशाश्वत । धमंतत्व-जो कि सीधा मोक्ष से सम्बन्धित शाश्वत के संगीत का मधुरलय है। परन्तु भगवान्‌ महावोर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now