लघुशांतिसुधासिंधु | Laghushantisudhasindhu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) ग्रेथनिर्धाण, इसी प्रकार पृज्यश्राने अपनी विद्वत्ता द्वारा जनताका स्थायी उद्धार हो इस दतुसे आजतक भनेक प्रंथोंका निर्माण किया दे | पृज्यवर्यन अभीतक उत्तमोत्तम तीसो प्रंथोंका निर्माण किया है | बे प्रथ इतने लोकप्रिय हुए दे कि आचार्यश्रीके भक्तोने उनको इजारोंकी संख्यामें प्रकाशित कर उनका प्रचार किया है | উল जैनेतर सभी ढोग बहुत दिलचस्पीसे उन ्रर्णोक। स्वाध्याय करते है । चातुमास व तीथ्थद्धार. पृज्यश्रीका चातुर्मास जद्दा भी हुआ दे वद्दा अभूतपूर्व प्रभावना हुई दे | आपके चातुर्माधका दी फड दे कि गुजरातके कई तीर्थोका उद्धार हुआ दे | तागा कषत्रे विशार मानस्तभ व प्रतिष्ठा मद्दोत्सव, इसी प्रकार पात्रागढ़ क्षेत्रम विशाल मानस्तम १ प्रतिष्ठ! पूज्यश्राके चातुमासके फलस्वरूप हुए हैं। इती प्रकार जद्दर, ईंडर वंगरद् स्थानके चातुर्मासमें भी बहुतसे महत्वपूणी कार्य हृए्‌ दे | अनेक स्थानमें वर्षोत्ते आया हुआ पर- स्परका वैषम्य पूज्यश्रीक उपदेशसे दूर हुआ । स्‍थान स्थान पर संगठन द्वोकर ध्माज बहुत प्रेमसे कार्य करती § | पृञ्यश्रीके बचनोमें जादू जैसा प्रभाव दे। उनके सुंदर मिष्ट हवितमय वचन पत्थर जेसा हृदय भी पिघछ जाता है, सामान्य मनुष्योंकों बात दी क्या है ? इसलिए सत्र प्रेमका संचार द्वोता है । विश्वकल्याण- इस प्रकार पृज्यश्रीके दिव्य विद्वासे भव्योंका मदहतदुपकार




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