नाग यज्ञ | Naag Yagya

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Naag Yagya by दरबारीलाल - Darbarilal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ अरल-कठिनका भेद नहीं किया जा सकता, पर मादा तो हिन्दी-उ्दू হক হা ই . दोनोंका व्याकश्ण एक है, क्रियाएँ एक हैं, अधिकांश शब्द एक है, कुछ , दिनो संस्कृतवारोंने संस्कृत शब्द बढ़ाने शुरू किये, अरबी-फारसीयाडंनें अरबी-फारसी झब्द, बस एक भाषके दो स्प होगये और इसपर हम छक़ने रूणे | हम दया कहें कि मिहर, इसीरर हमारी मिहरयानी और दयाजुताका दिवारा निकल गया, प्रेम और मुहब्बतमेंही प्रेम और मुहब्बत न रही । भाषा तो इसलिये है कि हम अपनी बात दूसरोंकों समशा सके । बोलने की सफलता तभी है जब ज्यादासे ज्यादा आदमी दमारी बात समझे। अगर हमारी माषा इतनी कठिन रै कि दुसरे उसे समक्ष नही पाते, तो यह हमारे छिये शर्म ओर दुभोग्यकी बात है। जब में दिल्ली तरफ जाता हूँ तब, व्याख्यान देने मुझे कुछ शर्मसी मादम होने लगती हैं। क्योंकि मध्यप्रान्तनियासी होनेके कारण. और जिन्दगी भर संस्कृत पढ़ानेके कारण मेरी भाषा इतनी अच्छी अथांतू सरल नहीं है कि वहोँके मुसझमे।न पूरी तरह धमझ सकें। इसलिये में कोशिश करता हूँ कि भेरे बोलने में ज्यादा संस्कृत शब्द न आने पावें। इस काममें जितना सफल होता हूँ उतनी ही मुझे खुशी होती है, और जितना नहीं हो पाता उत्तनाही अपनेको अमागा और नाछायक समझता हूँ। शुने यह्‌ समझ्में नहीं आता कि छोग इस बातमें क्या बदादुरी समझते हैं कि हमारी माषा कमसे कम आंदमी समझे | ऐसा है तो पायलकी तरह चिल्ाइये, कोई न समझेगा, फिर समझते रहिये कि आप बड़े पंडित हैं। * हरएक बोलनेवालेको यदइ समझना चाहिये कि बोलनेका मजा ज्यादासे ज्यादा आदमियोंकों समझानेमें है। पागल की तरह बेसमझीकी बातें यकनेमें नहीं। हाँ, सुननेवालोंको भी इतना खयाल रखना चाहिये कि हो सकता है कि ' बोलनेवाला सरकसे सरल बोलनेकी कोशिश कर रहा हो। पर जिन शब्दोंकों वह सरल समझ रहा हो, वे अपने छिये कठिन हों। उसका भाषा-शान ऐसा इकतरफा हो कि वह ठीक ब्ररहसे हिंदुस्थानी यां सरलं माषा न बोल पाता हो। तो इसकी इस बेवशीपर इमें दया करना चाहिये। बिना समझे घमण्डी था ऐसाही कुछ न समझना चाहिये। और बातोंमें लड़ाई हो तो समझमें आती है। पर भाषामे लड़ाई हो तो कैसे समझें ! माषासे ही तो हस समझ सकते हैं। इसलिये चाहे लड़ना हो चादे




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