दक्षिण अफ्रीकाका सत्याग्रह | Dakshin Africa Ka Satyagrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
443
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७)
पहुंचता है। मनृष्य जब झपने आपको रजकणसे भी छोटा मानता है तभी
ईश्वर उसकी सहायता करता है । राम निर्बलको ही बल देते हे ।
इस सत्यका अनुभव तो भ्रभी हमें होना है । इसलिए में मानता हूं कि
दक्षिण श्रफ़ीकाका इतिहास हमारे लिए सहायकरूप है ।
जो-जो अनुभव वतंमान संग्राममें श्रवतक हुए हें, पाठक देखेंगे कि
उससे मिलते-जु लते अ्रनु भव दक्षिण अफ्रीकामें भी हुए थे। दक्षिण अ्फ्रीका-
का इतिहास हमें यह भी बतायेगा कि भ्रमीतक हमारे संग्राममें नेराश्यका
एक भी कारण नही हैं। विजयके लिए बस इतना ही जरूरी हैं कि हम
झपनी योजनापर दुढ़ताक साथ भ्रारूढु रहें ।
यह प्रस्तावना में जुहु' में बैठा लिख रहा हूं । इतिहासके ३० प्रकरण
यरवडा जेलमें लिखे थे। में बोलता गया और भाई इन्दुलाल याज्ञिक
लिखते गए । बाकीके प्रकरण पीछे लिखनेकी सोचता हूं । जेलमें मेरे पास
झाधारके लिए पुस्तकें न थी। यहा भी उन्हें इकट्ठा करनेकी इच्छा
नही है। व्यौरेवार इतिहास लिखनेकी मुझे फुरसत नही है। उत्साह
या इच्छा भी नहीं है । मेरा उद्देश्य इतना ही है कि हमारे वर्तमान संग्राममें
इससे मदद मिले भर कभी किसी फुरसतवाले साहित्यविलासीक हाथों यह
इतिहास विस्तारपूर्वकं लिखा जाय तो उसके काममें मेरा यह प्रयत्न
पतवार--पथप्रद्शंक---हूप हो सके । यद्यपि यह बिना ग्राधारके लिखी हुई
चीज है, फिर भी कोई यह न समझे कि इसमें एक भी ऐसी बात है जो
सही नही है या एक जगह भी भ्रतिशयोक्ति की गई है, यह मेरी प्रार्थना है ।
क बुधवार, है
फाल्गुन वदी १३, सं० १६९८०, / --मोहनदास करमचंद गांधी
२ भप्रैल, १६२४
१ अम्बका उपनगरे ।
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