दक्षिण अफ्रीकाका सत्याग्रह | Dakshin Africa Ka Satyagrah

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Dakshin Africa Ka Satyagrah  by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७) पहुंचता है। मनृष्य जब झपने आपको रजकणसे भी छोटा मानता है तभी ईश्वर उसकी सहायता करता है । राम निर्बलको ही बल देते हे । इस सत्यका अनुभव तो भ्रभी हमें होना है । इसलिए में मानता हूं कि दक्षिण श्रफ़ीकाका इतिहास हमारे लिए सहायकरूप है । जो-जो अनुभव वतंमान संग्राममें श्रवतक हुए हें, पाठक देखेंगे कि उससे मिलते-जु लते अ्रनु भव दक्षिण अफ्रीकामें भी हुए थे। दक्षिण अ्फ्रीका- का इतिहास हमें यह भी बतायेगा कि भ्रमीतक हमारे संग्राममें नेराश्यका एक भी कारण नही हैं। विजयके लिए बस इतना ही जरूरी हैं कि हम झपनी योजनापर दुढ़ताक साथ भ्रारूढु रहें । यह प्रस्तावना में जुहु' में बैठा लिख रहा हूं । इतिहासके ३० प्रकरण यरवडा जेलमें लिखे थे। में बोलता गया और भाई इन्दुलाल याज्ञिक लिखते गए । बाकीके प्रकरण पीछे लिखनेकी सोचता हूं । जेलमें मेरे पास झाधारके लिए पुस्तकें न थी। यहा भी उन्हें इकट्ठा करनेकी इच्छा नही है। व्यौरेवार इतिहास लिखनेकी मुझे फुरसत नही है। उत्साह या इच्छा भी नहीं है । मेरा उद्देश्य इतना ही है कि हमारे वर्तमान संग्राममें इससे मदद मिले भर कभी किसी फुरसतवाले साहित्यविलासीक हाथों यह इतिहास विस्तारपूर्वकं लिखा जाय तो उसके काममें मेरा यह प्रयत्न पतवार--पथप्रद्शंक---हूप हो सके । यद्यपि यह बिना ग्राधारके लिखी हुई चीज है, फिर भी कोई यह न समझे कि इसमें एक भी ऐसी बात है जो सही नही है या एक जगह भी भ्रतिशयोक्ति की गई है, यह मेरी प्रार्थना है । क बुधवार, है फाल्गुन वदी १३, सं० १६९८०, / --मोहनदास करमचंद गांधी २ भप्रैल, १६२४ १ अम्बका उपनगरे ।




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