लहर भर समय | Lahar Bhar Samay

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Lahar Bhar Samay by संजीव मिश्र - Sanjeev Mishr

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about संजीव मिश्र - Sanjeev Mishr

Add Infomation AboutSanjeev Mishr

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
डुच्चा के गले बैठते जा रहे है तार सप्तक मे अपनी चीखों को दोहराते हुए न घड़ी रूकती है न कलेडर अब मुटललो गाकर मुक्ति दे होप यवनिका पतन्‌ नेपथ्य मे हाह्यकार के बाद) परदे की डोरी लिपदी हे गले में लगातार कसती ये जाने कौन बता गया कि आखिर में गाएगी सबसे उत्तम गीत है कहाँ वो २ हस ही होते मरते चाहे गा कर परदा तो गिरता छुट्टी तो मिलती गले की फासी मुटल्लौ का गाना घड़ी जाने कहाँ री गई वक्त बीते चला जा रहा है) नहर भर समय 15




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now