रेडियो नाटक संग्रह भाग 2 | Radio Natak Sangrah Bhag 2

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Radio Natak Sangrah Bhag 2  by रमेश नरायण - Ramesh Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कोलाहल ममिता मां লাঁদলা पिता মা নিলা मेनिता नमित) भया 9 जाती है। तब यह चिंता नहीं रहती वि रुपये वहा से, कंसे आ रह हूं (तमी टेलीफोन को घण्टी गनती द + बहरिए, टेलीफोन में सुनती हू । ০: हैंड, (जल्दी से आकर) 9. ४ रणेन पिताजी, फोन पर आपने गमा ২২ दा (फोन पर) क्या ? पवस प्रेस ছি, তি ই ' ठीफ है! ২৯৫৯৮ हाय, सयानाश हो गया | वल अखबारा में खबर छपेर्ग,, तो हम मुह दिखान लायक नहीं रहेगे । मा, चुप हो जश्रो । यो शोरन मचाग्रो । पिताजी, मै जभ जाकर भैवा को तार दंती है. उहे फौरन यहा पहुचना चाहिए अब वही कछ कट सवते हँ (मतराल सगीत) (फोन पर घण्टो यजतो है) (स्सोवर उठाकर) हैलों।_ कौत नादन ? हा, हा, हा, मैं नमिता बोल रह हु॒ में तुम्हारे फॉन का इतजार कर रही थी हा समझ गई तुमने यह खयर जख्षप्रार में पढ़ी होगी क्या? कुछ वहा नही जा सता क्रया? पिताजी इपर नहीं करते. हा चर्चा तो हो ही रही है. मुझे यह सब अच्छा नही लग रहा बाहर निकलने को भी जी नही चाहता । क्या? नहीं, नादन, अभी तुम हमारे घर ने आना क्या ? हा, भेया को तार दिया था, वे वल पतथाग्रपे नदन, मैं बहुत परेशान हू तुम ही कृछ सोचो... नादन, तुमसे बात बरके मुझे बहुत सहारा मिला है. देखू, भैया कया सोचते है अच्छा; बाई-वाई ! (आतराल सगीत। मेज पर चाय दे' बतेन आदि फी लाबाज) भैया, चाय वेः साय कुछ तामे ? नही ।




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