श्रीश्रीचैतन्य - चरितावली | Shri ShriChaitanya Charitavali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
254
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रभुके बृन्दाथन जानेसे भक्तोंकी विरद्द १३
प्रमुके दर्शनोंके लिये उत्सुकता प्रकट कर रही थीं। इसलिये मदासजने
इाथियोपर जरीदार पर्दे डल्याकर उन्हें रास्तेके इधर-उधर खड़ा कर दिया;
जिससे ये मद्गप्रभुके मलीमाँति दर्शन कर सकें। महाप्रभु प्रेममें पागल हुए.
मन्द-मन्द गतिसे उधर जाने छगे । उनके पीछे द्वाथी, घोड़े तथा बहुत-से
लोगोंकी भीड़ चडी। इस प्रकार समी भक्तेके सदित प्रथु चिरोटा
नदीके किनारे आये | वहाँ महाराजकी ओरसे नौका पहलेसे टी तैयार
थी। महाप्रभुने मक्तोंके सद्दित चित्रोत्पण्णा नदीकों पार किया और नतुद्धारमि
आकर समीने रात्रि व्यतीत फी । जह्“ँसे प्रभुने चित्रोत्पणाकों पार किया)
यहाँ मद्दाराजने प्रभुकी स्मृतिमें एक बड़ा भारी स्छृतिस्तूप बनवाया और
उस धाठकों तीर्थ मानकर ख्लान करनेके निमित्त आने छगे |
गदाधर पण्डितका नाम तो पाठक जानते ही होंगे। ये मद्माप्रभुकी
आशतसे क्षेत्र-संन्यास लेकर पुरीके निकट गोपीनाथजीके मन्दिरमे उनकी
सेवा करते हुए, निधास करते थे । किसी तीर्थ्मे घर-द्वारको छोड़कर
प्रतिगापूर्वक रहनेको क्षेत्र-संन्यास कह्दते हैं । यहाँ रहकर भगवत्-प्रीत्यर्थ
ही सब कार्य किये जायें, इसी सड्डल्पसे पुरुपोत्तम-क्षेत्रम गदाघरजी
निवास करते थे | जब मद्गाप्रभ॒ गौड़-देशकों चलने लगे, तब तो उन्हें
पुरुषोत्तम-क्षेत्रम रहना असह्य हो गया और वे सब कुछ छोड़-छाड्कर
प्रमुके साथ हो लिये ! मह्प्रभुके चरणेमिं उनका हृद अनुराग था, वे
महप्रभुको परित््याग करके क्षणमर भी दूसरी जगद रहना नहीं
चाइते थे | महाप्रभुने इन्हें बहुत समझाया, किन्तु ये किसी प्रकार भी
छौटनेको तैयार नहीं हुए । जब्र महाप्रभुने अत्यन्त ही आग्रह किया। तब
प्रेमजन्य रोपके स्वरमें इन्होंने कद्ा--“आप मुझे विवश क्यों कर रहे हैं ।
जाइये। में आपके साथ नहीं जाता । मै तो नवद्धीपमै शचीमाताके
दर्शनोंके लिये जा रहा हूँ । आप मेरे रास्तेक्रो वो रोक ही न लेंगे । बस+
इतना ही है कि मैं आपके साथ नहीं चहूँगा |? इतना कहकर ये प्रभुसे
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