नागरीप्रचारिणी पत्रिका | Nagri Pracharini Patrika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाणिनि श्रौर उनका शाल १६१ पाशिनीयं महत्युनिहितम्‌ । ( भा० ३।२।३ ) अर्थात्‌ पाणिनि का महान्‌ शास्त्र सुबिरचित है। काशिका के अनुसार सारे लोक में पाणिनि का नाम छा गया ( पाशिनि शब्दों लोके प्रकाशते, २।१।६ ); सर्वत्र 'इति पाणिनि' की धूम हो गई | पाणिनि की इस सफलता का स्रोत लोक की दृष्टि में ईश्वरीय शक्ति के अतिरिक्त और क्‍या हो सकता था ? इसी कारण यह श्रन॒श्रुति प्रचलित हुई कि शब्द के आदि आचाय भगवान्‌ शिव की कृपा से पाशिनि को नया व्याकरणशाज्त्र प्राप्त हुआ | पाशिनि की श्रषटाध्यायी में लगभग चार सदस सूत्र हैं, अथवा ठीक गिनती के अनुसार १६६४ हैं, जिनमें 'श्र इ उ ण 'ऋ लू क्‌! आदि अत्तर-समास्ताय के चौदह प्रत्याह्वार सूत्र भी सम्मिलित हैं। पाणिनि ने सूत्रों की शैज्ली में श्रत्यंत ही संत्षिप्त अक्षरों के द्वारा प्रंथ की रचना की। सूत्र-शैली पाणिनि से पूर्व ही आरंभ हो चुकी थी । आाह्मण-प्रथों के बृहस्काय पोथों की श्रतिक्रिया-हूप सूत्रों की सुंदर हृदयग्राही शैली का जन्म हुआ था। संसार की साहित्यिक शैल्लियों में भारतवर्ष की सूत्ररोली की अन्यत्र उपमा नदीं है । यो तो श्रौत, धमं श्रौर गृहमसूत्रों एवं प्र/ति- शाख्य आदि वेदिक परिषदो के म्रंथों में सफलतापूर्वक सूत्रशैली का प्रयोग हो चुका था, किंतु उत्ती को अच्छी तरह से मॉजकर इस शैली की पूर्ण शक्ति और संभावना के साथ उसे काम में लाने का श्रेय पाशिनि को ही है। सूत्रशैली फो मॉजने की कल्पना पाशिनि के मन में थी। प्रयत्तपृषंक माँजि और निखारे हुए सूत्र को उन्दोंने अतिष्णातः कद्दा है ( सूतं प्रतिष्णातम्‌ › ८।३।६० ) । श्यततएव 'सूत्रकार! संज्ञा पाणिनि के लिये प्रचलित हुई। महाभाष्य में पतंजलि ने एक प्राचीन उदाहरण देते हुए सूत्रकार पद पाणिनि के लिये ही प्रयुक्त किया है ( पाणिनेः सूत्रकारस्य, २२११) । पाणिनि से पूवं भी व्याकरणशाल की रचना हई, परंतु उस्र समय लक . झौर लक्षण अर्थात्‌ शब्द चौर उनकी सिद्धि के नियम, इन दोनों को मिलाकर व्याकरणं समभा जाता था । पतंजलि ने लिखा है कि प्रत्येक शब्द की अलग- अलग साथनिका में न जाकर, अथवा उसके शुद्रूप का पथक्‌ प्रथक्‌ उपदेश न करके, पाणिनि ने सामान्य श्रौर विशेष नियमों को स्थिर करके सूत्र बनाए ( न दि पाणिनिना शब्दः प्रोक्तः, किन्तर्हि, सूत्रम्‌, पस्पशाहविक वा० १२ ०। व्याकरणशाल्ल को सूत्रों में ढालने के लिये व्याकरण सूत्रयति, यह प्रयोग ही चल पड़ा (२।१ 1२६)। र




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