पूर्वोदय | Purvodaya

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Purvodaya  by जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संवोद्य की नीत कद शोपण की जगह सहयोग लेगा श्र श्रादमी की शक्ति जो एक दूसरे को पीछे श्र नीचे रखने में लगती है, एक-दूसरे को बढाने श्र उठाने में काम झायगी | तब हम देखेंगे कि श्रादमी की समस्याएँ खुद उन्नति करती जाती हैं। समस्याश्नो को मिटा तो नहीं है । तब तो जिन्दगी ही मिट जायगी श्रौर पुरुष का श्रथ पुरुषार्थ ही खत्म हो जायगा | नहीं, बल्कि समस्यात्रो का धरातल उठेगा श्रौर नोन-तेल-लकडी की वे न रह जायेंगी । वे सास्कृतिक श्र नैतिक होगी । तब श्रादमियों की होड़ झार्थिक न दोकर पारमार्थिक होगी । भारत की राजनीति को मौका नहीं है कि वह माने कि बिना नीति के राज-काज चल सकता है । नीति- यानी धर्म-नीति, डिप्लोमेसी नहीं | नेतिकता को बाद देकर स्वयं विग्रह का राजकारण श्रागे नहीं बढ़ता । साथ दी गांधीजी से यह भी प्रत्यक्त हो गया है' कि श्रव्यात्म न सिफ ससार से विमुख नहीं दै; बल्कि ससार के श्रमाव में वदद श्रधूरा और पीला दे रदता दे ।.. इस तरह यद्यपि ऊपर के दो, भौतिक श्र नेतिक, इृष्टिकोणों का श्रन्तर गहरा» श्रौर मौलिक है, फिर भी विवाद की गु'जाइश नहीं रहती । जो चेतना को छोड़कर बाहरी परिस्थिति से जूक रहे हैं, ऐसे सांसारिकों से श्रटके श्रीर हिलगे बिना सास्कारिकी का काम चलते रहना :चाहिए ! चुनाव का श्र दलबदी का काम उस प्रकार का ईमान ओर स्वभाव रखने वाले लोग क्यो न करें ? ज्यादे-से-ज्यादा यददी दो सकता है कि कुछ उसको रचनात्मक न माने । तो ऐसे रचनात्मक विचार के लोग उस दलगत काम से अलग रदकर श्रपना काम किये जावें तो स्वण० उन दर्लों का सहयोग उनको मिल सकता है । बल्कि रचनात्मक काम एक ही साथ सब दलों को ताकत पहुँचानेवाला है। वह तो जमीन है जिस पर दर बीज को पढ़ना श्र वहाँ से रस लेना है, नहीं तो वह जड न पकड़ पायगा ) “रचनात्मक शब्द इघर बहुत चलता है । जिसको जो करना होता




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