ऋग्वेदभाष्यं | Rigwed Bhashyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
758
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऋग्वेद: अ० ५। अ० १। १० १२५॥ १९,
र च क
भविः चऋ्न्न वाचकल्ु ° -हं मनुष्या पंथा सुपुत्रः पितु-
नप्राभोति तथाऽग्निरम्नीनप्रप्रोति प्रतिद्धो मत्वा स्वस्वष्पं कारणं
प्राप्य स्थिरो भवति येऽभिन्याततांविदयुतं प्रकटयितुं विजानन्ति ते$-
सरूपमेस्वयेमाम्ु्रन्ति ॥ १९ ॥
पदार्थः हे भनुष्यों जो (वानी ) वेगबलादियुक्त ( वीकृपाणि: ) बलरूप [
সিল के हाथ हैं ( तनयः ) पुत्र के तुल्य ( अग्नि: ) স্সালি (यत्र) जहां (अन्यान्) |
। अन्य ( श्रम्नीन् ) अग्नियों को प्राप्त ( श्रत्यस्तु ) अत्यन्त हो ( सःइत् ) वही
( মাথা: ) श्रतोल अन्नादिपदार्थों वाला ( अक्षरा ) जले को (समेति) प्म्यकू
प्राप्त होता है कहां उस को तुम लोग सिद्ध करो ॥ १४ ॥
भावाथेः-हृस मंत्र में वाचकलु ०-हे मनुष्यों ! जैमे सुपुत्र पितरों को प्राप्त हो
ता है वैसे अम्नि अर्नियों को प्राप्त होता हैं तक प्रसिद्ध हो कर अफने स््वरूपकारण को
प्राप्त होकर स्थिर होता है, नो लोग अभिव्याप्त बिजुली के प्रकट करने को नानते
हैं वे असंख्य ऐश्वय्ये को प्राप्त होते हैं॥ १४ ॥
पुनः सोऽग्निः कीदरीऽस्तोत्याह ॥
फिर वह अग्नि कैसा हे इए विषय कोर ॥
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सेदम्नियों वनुष्यतों निपाति समेद्धारमहस
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उरुष्पात् । सुज्ञातासः पार चरान्त वाराः॥ 1५॥२५॥
सः। इत् । अनग्निः । यः । वनुष्य॒तः । निऽपाति । सम्ऽ-
एदधारम् । भंहदंसः । उरुष्यात् । सुऽजाताससः । परि । चर-
न्ति! वीराः ॥ १५॥
पदाथेः- (सः) ( इत् ) एर (গহিন: ) पावक्रः ( यः )
( वनुष्यतः ) याचप्रानात् ( निपाति ) नितरां रक्षति ( समेद्धा-
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