प्रायश्चित और उन्मुक्तिका बंधन | Prayshchit Aur Unmuktika Bandhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी - Padumlal Punnalal Bakshi
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पदुमलाल बक्शी- Padumlal Bakshi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ पहला अंक
कमठा+--
कुमार, तुम अकेले नहीं आये हो! ब्रक्षके नीचे वह कौन
खडा है!
कुमारसिह--
कमला, कुछ भय मत करे । वह तुम्हारी ही सेवाके लिए
खड़ा है | पर तुम उदापत कसी हो ‹ तुम्हारा शशर कॉप क्यों
रहा है ? प्रिय, घेये घर | वह देखो, आकाशंम नक्षत्र भी हम
लेगेंके आगमनकी प्रदीक्षासे चंचल हो रहे हैं । आओ, आज
तुम्हे में अपने हृदय-मंद्रिर्की अधिष्ठाओ देवी बनाऊँ । पर तुम्हारा
भय अब भी नहीं गया है | क्या तुम्हें कुछ आशंका है £
प्रिये, देखो, मेने तुम्हें अपने बराहु-पाशम बद्ध कर लिया है ।
तुम इससे निकल नहीं सकती । अब्र मंदिरकी अंधकार-पूर्ण
न्यत्र मत जाओ | प्रेम आजतक उपम निद्रित था | अब
प्रमने आझाकका दर्शन किया ६ जा उसे दुलेभ हो गया था ।
द श्रमका विजय-दिवस है । आज प्रेमने हम लोगोंके हृदयोंको
एकत्रित कर भविष्य भाग्यका निश्चय कर दिया | कमछा, आज
$ तुम्हें प्रथम वार देखता हैँ, नुम्होंर समीप आकर तुम्हे स्पशे
करता हूँ ।
[ कमलाको हृदयसे लगा छेता है । ]
कमटा--
कुमार, मुञ्च स्परे मत करो, पुङ्खे दूर रहो । क्या तुमने ऐसी
ही प्रतिज्ञा कौ थी !
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