अमिता | Amita

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Amita by हंसराज रहबर - Hansraj Rahabar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भिन्‍न था। दरअसल अमिता का अभिप्राय 'मन' शब्द का अर्थ देखना नहीं, मत और शरीर के सम्बन्ध को समझना था । कोशकार ने साघारण चालू अर्थ तो लिख दिए थे; मगर इस पक्ष पर तनिक भी प्रकाश नही डाला था। प्रकाश न डालना उसकी भूल नही थी, क्योंकि उसने कोई दार्शनिक प्रंथ गही लिखा था, एक द्ब्द कोश का सम्पादन-भर किया था, लेकिन अमिता को यह बात जची नही, उसे जिंदगी में पहली वार कोदकार के अत्प और सीमित ज्ञान पर तरस भाया और उसकी इस हसी का कारण भौ शायद यही থা। इसी समय अमिता की ननद कल्याण ने कमरे में प्रवेश किया । वह मंझोले कद और भरे शरीर की महिला “बी और उम्र अमिता से दो-तीन साल ही वडी होगी । उसने भाभी को किताव पर झुकी देखकर पूछा : “यह क्या पढ़ रही हो ?” अमिता ने सिर ऊपर उठाकर एकटक ननद की ओर देखा और फिर मुस्कराते हुए उत्तर दिया, “मन का अर्थ 'खोज रही हूं ! “अच्छा, मेरी भाभी इतनी भोली है कि उसे मन का भी स्थं नही आता ।' कल्याण ने परिहास के स्वर में कहा | ... बेचारी किस खेत की मूली हू, मन का अर्य तो इस कोशकार को भी नही आता ।' अमिता ने उत्तर दिया। 'तो मैं बताऊ ?* { १७




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