दो बहनें | Do Bahne

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Do Bahne by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मी मौर नके भाग्य में केवल कुछ खुर्चच रह जाएंगी ! इसीलिए जान बचाने की सोच रहे हैं । शमिला ने झुझलाकर कहा, “ऐसा कभी नहीं हो सकता। अगर साझेदारी ही करनी है तो हम लोगों के साथ करो । ऐसा काम तुम्हारे हाथ आकर निकल जाएं तो बुरा होगा । अपने रहते मैं ऐसा होने नहीं दूंगी, तुम चाहे जो करो 1” इसके बाद लिखा-पढ़ो होने में देर नही छगी । मथुरा दादा का हृदय भी विगलित हो गया । काम तेजी से चलने लगा । इसके पहले नौकरी की जिम्मेदारी लेकर शशांक ने काम किया है । उस शिम्मेदारी की एक सोमा थी 1 मालिक बाहर के थे। देते-पावने में सामंजस्थ था | अब अपना ही সা अपने को चलाता है। दावा और देय मिलकर एक हो गए हैं। दिन में काम और छुट्टी की निश्चित अवधि नहीं रह गई है । जो जिम्मेदारी उसके मन पर हावी है वह इसलिए और भी कठोर है कि इच्छा होते ही उसे छोडा जा सकता है; औौर कुछ न हो, स्त्ती का ऋण तो उसे चुकाना ही पड़ेगा । उसके बाद कही सुस्थ होकर धीरे- धीरे चलने का समय आएगा । बायें हाथ में रिस्टवाच, प्र पर सोछा हैट, आस्तीन चढ़ाएं हुए, खाकी पैंट पर चमड़े की कमर-पेटी, पाव में मोटे सोल के जूते और आखों पर घूप या रगीन चश्मा चढाकर शशाक काम में जुट गया। स्त्री का ऋण पूरा होने पर था गया है फिर भी बह स्टीम कम नहीं करना चाहता । इस समय उसका मत गर्म हो उठा है। इससे पहले घर-गृहस्थी के आय-व्यय की धारा एक ही नाले से बहुती थी । अब उसकी दो शाखाएं हो गईं। एक चैकः को ओर गई; दूसरी घर की ओर । शमिला को पहले जितना ही धन मिलता है १ कहां किसका क्या देना-पावना है, इससे शशाक को कुछ मतलब इसी प्रकार व्यवसाय-सम्बन्धी चमडे एौ जित्दवाला घाता शः १४




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