मेवाड का सामाजिक एवं आर्थिक जीवन | Mewar Ka Samajik Avam Arthik Jeevan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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स्थानीय भाषा में नाल! कहा जाता रहा है । इन वालों में देसुरी, जीलवाडा
और हवयोगुटा नी नाल, जोधपुर राज्य और मवाड के मध्य भावायमन के
लिये प्रयोग होती रहो थीं) इसो भू भाष से राज्य के कद्वीय प्रदेश वो
उपजाऊ बनाने बादी नदिया निकली हैं। इस पवतीय क्षेत्र में भशधिकतर
राज्य के झ्रादिनिवासी भीर्सी वा निवास रहा है। यह जाति पवतीय उपज
शौर हृषि) पर अपना जीवन निर्वाह करती आई है। झ्रालोच्यकाल मे इस
क्षत्र का भू प्रवाघ खालसा एंव जागीर के प्रशासनान्तगंत था। इस क्षेत्र में
कुम्भलगट सायरा, गोगुदा, कारोत व्यादि स्थानं जन जीवन के प्रमुख
क्रये
(ष) दक्षिणी भरावलो श खला- यह् पवत्तीय भाग छान एवम् खनिज,
प्रौपधियो तथा इमारती काष्ठ षी द्स्टि ভ बहुत सम्पन्न रहा है।? इस भाग
मे राज्य के दक्षिणी भाग वी भोर बहन वाली नदियों म॑ गोमती, माही तथा
बाक््ल ললী भुख्य है। यह प्रदेश पुन मयरा मेवल तथा छप्पन नामक उप
হীনী मे विभक्त है ।? मेव, मीणा भर भीव जैसी भ्राटिवासिया को बध्तियो
के साथ इस क्षेत्र में सतुम्बर, चावड प्रागना पानरवा, जडा व जवास
ठिकानों के आसपास समय जातियो को बस्तिया भी विद्यमान रही यीं।
उपरोक्त प्रवतत श खलाए मेवाड राज्य के लिए दर्लिए, पश्चिम तथा
उत्तर की शोर सीमा रक्षक का काय करता थो । इस ओर स हीने वाल
शत पा के प्राश्षमश कभी सफ्ल नहीं हुए थे ।* व्सके साथ ही यह खेत
मेवाडी-जन क' लिए सकट के क्षणों में भाथ्य स्थल का काय भी करता रहा
था । क्षेत्र की दुयम तथा वीहड स्थिति के ब1रण जबसद्यात्मक् प्टिमे यह्
হীন অইল “यून झावादी बाला क्षेत्र वना रहा, जिसके वि'ह आज भी देख जा
सकते हैं ।
जगत के सूसे वक्षो व घास को जला कर खाद बनाना तथा इसी मे
बीज छिटक कर वर्षा मं पकने दना को वातरा (या बच्लर) खेती बहा
जाता रहा है--3 ई মা 2৭ 9 गहलोव--राज इति पृ 135
द्रष्टव्य--खान एव खनिज भरनुच्छेद 1
उदयपुर के भासपास वाला क्षेत्र मयरा बाकस नदी के पास बाला
भोमट गोमती नत के पुर्वों भाग मं मवल तथा गोमती & माही नदी के
मध्य का क्षेत्र छ्पन कहलाता रहा है ।
# गुजरात पर प्रध्रिकार हो जान के पश्चात् भी मराठा लाग इस আহত
प्रात्रमण की नहीं सोच सके थे ।
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