वैदिक सिद्धान्त | Vadik Shinddhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संस्कार [3] पावल्य होगा तो चह सलों को रोकंगे। यही दशा पूर्व जन्म के धमायों को है । दुखगा उदाहरण खेत का हैं । खेत में झाप गाजर, सूली शोर शलजम को बीज धोते हैं । यह बीज समान नहीं है । सख्त के य्याद में तीनों प्रकार के वीजा की सजातोय सामग्री उपस्थित हू। परन्तु गाजर का बीज अपनी रूजातीय बस्तुआ्ओी का तो अ्रहला करता हैं श्ौर शंघ फो छाड़ देता हैं । यही मूनी श्र शलजम के बीजों का हॉल है । इसी प्रहार पूवजन्म के प्रभाव कार्य करते हैं । यहीं कारण है कि पुकसों परिस्थिति में रहकर भी दो बच्चे दो प्रकार के हो जाते हैं । यदि यच्ये श्रारस्भ से ही पक समान शुद्ध होते ता उनमें पक सी पर्स्थिति में रहकर सेद भाव न होता । अब देखना चाहिये कि संस्कार की अआवश्यज ता कहां पड़ती है । बच्चा भले श्रोर बुर प्रभावों को लेकर अपने नये जीवन में प्रचश करता है । उसके पालन पोपग का भार समाज पर पता है। अतः समान के नियम इस प्रहार के होने चाहिये कि पूव जन्म के बुरे प्रभावों का शने: २ तिरोभाव होता जाय शोर र्छे प्रभाव उन्नत दशा को प्राप्त होते जाय | समाज पेगा करने के लिये जिन नियमों का पालन करता हैं उनको हो स्प॑स्कार कहते हैं । सब से पइला गर्भाधान संस्कार दे । ने वालें जीचात्मा की या वें लिये झाधघार तंयार करन का नाम हो रर्भाधान स्वंस्कार है. कर्पना कीजिये कि श्रापको किसी गोरवोन्वित तिथि को प्रतीक्षा है । झाप उसके ठउदराने के लिये पक भवन निमाण करते हैं, उखके झाराम के लिये सामध्री पकत्रित करते हैं । इसी प्रकार जो माता पिता चाहते हैं कि हमारे घर में पक श्रच्छा जीव जन्म लें इनको उस जोच के रहने के लिये भवन निर्माण श्रथांत्‌ शरीर निर्माण की तेयारो करनी चाहिये । जिस प्रकार के शरीर बनने को




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