श्री रामकृष्ण एवं विवेकानंद की वैचारिक पृष्ठभूमि में अद्वैत वेदांत की सार्थकता | Shri Ramkrishna Avam Vivekanand Ki Vaicharik Prishthbhumi Mein Await Vedant Ki Sarthakata

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Shri Ramkrishna Avam Vivekanand Ki Vaicharik Prishthbhumi Mein Await Vedant Ki Sarthakata by शैलेंदु नाथ मिश्र - Shailendu Nath Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री रामकृष्ण देव जी के बचपन का नाम गदाधर था तथा उनके पिता 'खुदीराम चद्धोपाध्याय' एक धर्मपरायण, निष्ठावान एवं सदाचार सम्पन्न ब्राह्मण थे। वे रघुवीर के उपासक थे। उनकी माता चनद्रमणी देवी' स्नेह, सरलता तथा दयालुता की प्रतिमूर्ति थी। गदाधर के परिवार के अन्य सदस्यों में श्री रामकुमार ओर श्री रामेश्वर उनके दो भाई तथा दो बहने-कात्यायिनी एवं सर्वमङ्गला थीं।' इस छोटे से बालक को केन्द्रित कर उनके परिवार वालों को अनेक लौकिक लीलायें दिखाई देने लगीं। पाँचवें वर्ष में श्रीरामकृष्ण को विद्यारम्भ संस्कार के बाद गाँव की पाठशाला में पढ़ने भेज दिया गया। वे श्रुतिधर' एवं 'स्मृतिधर” थे। एक बार भी वह जो कुछ भी देख या सुन लेते थे उसे किसी प्रकार भूलते नहीं थे। यह कहना कठिन है कि श्रीरामकृष्ण के जीवन मे दिव्य भाव का विकास सर्वप्रथम कब हुआ था। पर उनका देवीय स्वरूप शेशवकाल मे ही प्रकट होने लगा था। सात वर्ष की आयु में अकस्मात्‌ पिता का निधन हो गया। श्री रामकृष्ण देव का पाठशाला जाना बन्द हो गया और उनके विवेकशील मानस में संसार का सच्चा स्वरूप एकदम भासित हो उठा। पितृ-वियोग की इस एक ही घटना ने इस बालक के हृदय में संसार के प्रति तीव्र वितृष्णा उत्पन्न कर दिया। कलकत्ता के कालीमन्दिर में प्रधान-पुंजारी के रूप में पण्डित रामकुमार नियुक्त हुये। श्री रामकृष्ण देव भी झामापुकूर से वहाँ कभी-कभी आया करते थे। देव इच्छा से शीघ्र ही वे भी पूजा कार्य में नियुक्त हुये। उस समय वे इक्कीस या बाईस वर्ष के थे। कुछ दिनों तक काली मंदिर में पूजा करने के बाद श्रीरामकृष्ण के मन में प्रशन उठा भँ जो पूजा कर रहा हू, वह किसकी कर रहा ` शास्रयज्ञ खुदीराम चट्धोपाध्याय ने जब अपने आत्मज का जन्मलग्न देखा तो यह अत्यन्त शुभ मुहूर्त था। तो वे समझ गये कि स्वयं गदाधर विष्णु ही अपने वचन को परा करने आये हैँ । इसलिए उन्होने नवजात शिशु का नाम “गदाधर' रखा होगा। ` श्री रामकृष्ण लीला प्रसंग, प्रथम खण्ड-स्वामी शारदानन्द, पृ. 25




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