राजनीति प्रवेशिका | Rajneeti Praweshika

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अम्बा दत्त पंत - Amba Dutt Pant

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श्री परिपूर्णानन्द वर्मा - Shri Paripurnanand Varma

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हेराल्ड जे लास्की - Harold J Laski

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट राजनीति प्रवेडिका जिनके हाथ में यह शक्ति है, वे उस शक्ति के अनुसार अपनी मागि प्रभावी करते हैँ । ऐसी दशा में, इन मागं को वैध बनाने वाली विधि ही कानून हैं । जिस समय या स्थान पर आर्थिक शक्ति जिस प्रकार बंटी हुई होगी, उसी प्रकार उस समय तथा स्थान पर कानूनी आदेश अथवा आवश्यक कर्त्तव्य छागू किए जायेंगे। ऐसी परिस्थितियों में राज्य, आर्थिक व्यवस्था पर जिनका अधिकार होता है उन्ही की भमाँगों को व्यक्त करता हे । कानूनी व्यवस्था केवल एक अवगृण्ठन ह. जिसके पीछे शक्तिशाली आर्थिक स्वार्थ राजनीतिक अधिकार का लाभ उठाता है। राज्य, अपने कार्य में, जानबूभ कर सवेसाधारण कै प्रतिन्यायया कल्याण की खोज नहीं करता बल्कि व्यापक रूप में समाज के शक्तिशाली वर्ग के स्वार्थो का प्रतिपादन करता हैं । ऊपर लिखी बात से हमारा जो तात्पर्य हे और हम जो समभाना चाहते हैं उससे अधिक अथ निकालने की असावधानी हमें नहीं करनी चाहिए | हमने केवल राञ्य की सामान्य प्रवृत्ति बतलायी है । उसके कामों के विस्तार को नहीं समाया गया है । साधारणत£ तक यह किया गया है कि जिसके पास सम्पत्ति होती है, उन्हीं को विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं और जिनके कोई सम्पति नहीं होती वे इनसे वंचित रहत हैँ। इसी से यह भी मालूम होता है कि किसी समाज में स्वामित्व का संतुलन जिस प्रकार बदलता है उसी प्रकार राज्यके कायं का संतुलन भी बदलता रहेगा । यह्‌ सही हं कि इस प्रकार का परिवत्तंत शायद ही कभी तुरन्त होता हो और पूरी तौर से तो कभी भी नहीं होता । ऐतिहासिक गतिविधि में समय की ऐसी ठस लगती रहती हे कि हर प्रकार के परिवत्तंत आंशिक होते ह । ऐसी बहुत कम वर्ग होंगे जो अधिकार पाकर चरम सीमा तक उसका उपयीग करों। नए




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