तिब्बत : इतिहास एवं वृत्तान्त | Tibbet Itihas or Vrittant

Tibbet Itihas or Vrittant by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संहिता कानून लागू करने पर परामश लेने ल्हासा गया । 7? अपनी बारी आने पर 1661 ई. में नेपाल ने तिब्बत-नेपाल सीमा पर मुसीबत खड़ी कर दी । ताशी त्सेपा ग्यान्द्रोपा तथा मेचांरचपो के नेतृत्व में तिब्बती सेनाएं इन नेपाली सैनिकों को खदेड़ने गईं । .. इस प्रकार तिब्बत के अपने पड़ौसी देशों के साथ बाहरी मामलों के सम्बन्धों में मांच चीनी कहीं भी नज़र नहीं आते । तिब्बती प्रभ सत्ता का मांचुओं के अधीन होना तो दूर की बात है । लेखकों के अनुसार 1652 में पाँचवें महान दलाई लामा बीजिंग गह॒ जहां उन्होंने राजा मांचू वंश 1652-1911 को सलामी दी । यद्यपि यह तथ्य छूट गया कि 1649 और 1651 के बीच मांचू के नए सम्राट शून-चीन ने कई कुटनीतिज्ञ मिशन पाँचवें दलाई लामा के पास उन्हें पीकिंग पघारने का न्यौता देने भेजा ताकि वे कलाई लामा अपने प्रभाव के कारण मंगोलों को खदेड़ दें । आखिर में दलाई लामा ने इस शर्तें पर निमन्त्रण स्वीकार किया वे चीन में गर्मी तथा चेचक महामारी फेली होने के कारण वहां ज्यादा समय नहीं रूकेंगे ।१ तिस्संदेह उनकी यह यात्रा एक प्रभुसत्ता राज्य के अध्यक्ष की दूसरे प्रभुसत्ता देश की यात्रा थी । यदि सलामी का ही प्रश्न है जेसा लेखक कहते हैं तो दलाई लामा के पास कुटनीतिज्ञ सिशन भेजने न्यौता देने और चीन आने की प्रार्थना करने की बात ही नहीं उठती । दलाई लामा को उपाधि/पद देने की पेशकश का उनकी तत्कालीन राजनतिक हैसियत से कोई तात्लक नहीं है क्योंकि वे पहले ही तिब्बत के सर्वोच्च शासक थे । और तो और उनके तिब्बत लौटने पर जोंखाड के केन्द्रीय मन्दिर में रस्म के रूप में जोवो साक्‍्य मुनि को सुनहरी मोहर दी गई जो उन्होंने कभी प्रयोग नहीं की। अतः स्पष्ट है कि दलाई लामा को मांचू तिब्बती तथा चीनी लिखाई बाली दी गई मोहर का कोई और महत्व नहीं है । पहले भी हमने देखा कि एक साम्राज्य द्वारा दूसरे साम्राज्य को उपाधि देने का मतलब यह नहीं कि लेने वाले ने उपाधि देने वाले की अधीनता मान ली । यदि ऐसा होता तो तिब्बती पुरे चीन पर अपनी प्रभुसत्ता का दावा पेश कर सकता है क्योंकि राजा त्रीसड देत्सन ने नए चीनी सम्राट चेंग-हंग को टक््वाइज मोहर दी थी । ऐसे दावे कौन 16




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