हिंदी और बंगला उपन्यासों का तुलनात्मक अध्ययन | Hindi Aur Bangla Upanyaason Ka Tulnatmak Adhyayan

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Hindi Aur Bangla Upanyaason Ka Tulnatmak Adhyayan by संध्या द्विवेदी - Sandhya Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी भ उच्चकोटि के एतिहासिक उपन्यास, जिनमे अतीत कालीन घटनाओं को जीवन से ओर जीवन को मनुष्य के मनोरोगों से जोड़ा गया हो, सर्वप्रथम इन्हीं के द्वारा प्रणीत हुए । गढ़ कुण्डार, विराट की पदिमिनी झाँसी की रानी, मृगनयनी आदि वर्मा, जी की अद्वितीय रचनाएं हैं । ये उपन्यास पाठक के मन को बाँध लेते हैं । रांगेय राघव द्वारा रचित 'सीधा सादा रास्ता/कब तक पुकार मर्दों, का टीला' तथा कुछ अन्य उपन्यास छोटी सी बात' 'राई ओर पर्वत''मोहन जोन्दड़ो''भगवान एकलिंगभी इस वर्ग के उपन्यासों के मील के पत्थर है । ्रेमचन्द के ऑँचलिक उपन्यासो की परम्परा को नवीन मूल्यो की परम्परा मं बदलने का महत्वपूर्णः कार्थ फणीश्वर नाय रेणु के उपन्यासौँ “भेला आंचल जुलूस, दीर्घतपा तथा परतीः परिकथा ' द्वारा सम्पन्नं हज । हिन्दी के किसी भी कथाकार को किसी एक कृति पर एसी ख्याति नहीं मिली । रेणु के उपन्यासो की विश्चेषता है उनकी सशक्त, सकितिक सुक्ष्म व्यंग्यात्मक शैली । श्याम सन्यासी का उत्थान बलभद्र ठाकुरद्रारा रचित आदित्यनाथ, उदयशंकर भट्ट विरचित लोक~ परलोक , तरन-तारन का “हिमालय ढे आँचल' आदि कथाकृतियो ने एक नवीन ओपन्यासिक विधा का प्रवर्तन किया । उपन्यासो का लोकप्रिय होना स्वातन्त्रथोत्तर काल की विचित्र वस्तु है। रचनाकारों की एक लम्बी कतार उपन्यास रचना में लगी हुई है । स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद के हिन्दी उपन्यासों में नये शिल्पों, नये विचारों एवं नई उत्क्रान्ति ने अभिव्यक्ति पाई हे । भारतीय जीवन के अनेक अछूते अंग वर्णन के विषय बने है ओर नवीन सामाजिक




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