अष्टछापी कवियों के काव्य के रचनात्मक तत्वों के स्त्रोत एवं सृजनात्मकता | Ashtchhapi Kavion Ke Kavya Ke Rachanatmak Tatvon Ke Strot Evam Srijanatmakata

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Book Image : अष्टछापी कवियों के काव्य के रचनात्मक तत्वों के स्त्रोत एवं सृजनात्मकता  - Ashtchhapi Kavion Ke Kavya Ke Rachanatmak Tatvon Ke Strot Evam Srijanatmakata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ 9 य सो जन्नत (स्वग) मे पुय गये । कदाचित्‌ दसी लिये तुकी, अरब, ईरान, मंगेलिया आदे से आने वाले मुसलमानों ने भारत में बस जाने का जाने - अनजाने निर्णय ले लिया जो नितांत स्वाभाविक था। मुसलमानों ने जन मानस की भावनाओं का हर प्रकार से भरपुर भयादोहन किया । हिन्दू आचायो ने भारतीय तथा विदेशी सांस्कृतिक सन्धि द्वारा निमित माहोल को काटने के लिए धामिक, दार्शनिक, उदात्त, वातावरण निर्मित करने का उपक्रम किया । तथा हिन्दी प्रदेश के उत्तरी भू-भाग के | कवियों ने अपने दंग से ईष्वर भव्ति को जनता के समक्ष उपस्थित किया । दैष्यर भव्ति के पारस स्पर्श के कारण ही उनकी भवितत को ऐसा अद्भुत निखार मिला, जिसके कारण हिन्दी साहित्य कारों ने पु्ै-मधघ्य युग को भव्ति काल का अभिधान प्रदान কিতা | इस कल खंड की रचनात्मक उपलब्धि ऐसी रही कि हिन्दी साहित्य के विद्वानों ने इस काल ~ खंड, को स्वर्णुयुग कहा जो साहित्यिक प्रतिमानां का कीर्तिमान बन गया। । रोपक तथ्य यह है,कि जिन रचनाकारों के कारण भक्त युग कोस्वर्णः युग की मान्यता दी गयी है, वे सभी कवि समाज द्वारा प्रायः उपेक्षित रहे है! कबीर का लालन पालन ऐसे प॑रेवेश में हुआ, जिसमें कि हिन्दू तथा गुसलमान दोनों ही वर्ग उन अपनाने से मुकरते रहे! मलिक मुहम्मद जायसी अपनी कुरूपता के कारण शेरशाह सूरी के दरबार में अपमानित हुए । तुलसी, को माता ~ पिता तक अवांछनीय सन्‍्तान मानते रहे । इसलेए कि वे अभुक्त ` मूल नक्षत्र में जनमें थे । सूरदास तो अन्धे ही थे, ओर अन्धे व्यक्ति के लिये दुनिया का होना अथवा न होना बराबर है । मीश राज परिवार में रहते हुए भी उपेक्षा, घृणा, तिरस्कार, अपमान सहती रहीं उन जहर देकर मारते की कोशिश की गई । परन्तु इन महात्मा कवियों की उदास्ता अनुकरणीय हे, जिन्होनि कि समाज द्वारा तिरस्कृत होने पर भी अपने मानस - मंथन द्वारा देशवासिें को ही नहीं समूचे विश्व को स्वचिन्तन का अमृत प्रदान [किया]




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