प्रेमचंद | Premchand
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
209
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ ]
था इसे अंग्रेजी में लिखा गया था । उसी अंग्रेजी प्रतिरूप का श्रनुवाद हिन्दी में
इस पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो रहा है । अनुवाद के कारण पुस्तक की भाषा
मरौर इस पुस्तक में उद्धृत अन्य लेखकों के उद्धरणों के साथ जो न्याय नहीं हो
पाया है उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ ।
मैं प्रोफेतर सैयद एहतेशामहुसैन का विशेष क्ृतज्ञ हुँ जिन्होंने न केवल
पग-पग पर मेरा मार्ग-प्रदर्शन किया वरन् सदैव अपने स्नेह और निष्काम भाव
से मुझे प्रेरणा दी । मुझे विश्वास है कि जिस तत्परता और निष्पक्षता से प्रोफेसर
साहब ने मुझे मार्ग-दर्शन प्रदान किया है यदि झ्राज भी शोध-छात्रों को वैसी ही
सुविधा प्राप्त हुई तो देश में अच्छे शोधकर्ताओं की वृद्धि होगी और शोध का भविष्य
उज्ज्वल रहेगा। इस पुस्तक के अनुवाद में श्री श्यामाचरण तिवारी, एम०ए०, उप
सम्पादक नवजीवन का बहुत बड़ा हाथ है तथा डॉ० त्रिलोकीनारायण दीक्षित,
एम० ए०, एल-एल० बी०, पी-एच० डी०, डी० लिट० (रीडर, हिन्दी विभाग,
लखनऊ विश्वविद्यालय) ने भी महत्वपूर्ण सुझाव दिया । प्रो० राधेश्याम रस्तोगी,
एम० ए० (लखनऊ विश्वविद्यालय) ने इस पुस्तक की पांड्ुलिपि का पुननिरीक्षण
करने में विशेष श्रम किया था। इन तीनों मित्रों का मैं आभारी हूँ । डॉ०
लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय, एम ० ए०, डी° फिल०, डी° लिट०, (अध्यक्ष, हिन्दी
विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय) ने भी पूरी पाणडुलिपि देखकर महत्वपूर्ण सुझाव
दिये हैं। एतदर्थ उनका भी कृतज्ञ हँ । स्वर्गीय प्रोफेसर डी० पी० मझुकर्जी
(लखनऊ तथा अलीगढ़ विश्वविद्यालय), स्वर्गीय डॉ० बी० एस० हैकरवाल,
एम० ए०, एल-एल० बी०, पी-एच० डी० की प्रेरणा भी मुझे सदैव प्राप्त
रही । इस पुस्तक में विभिन्न पुस्तकों के उद्धरणों का उपयोग हुआ है अतः
मैं उनके लेखकों तथा प्रकाशकों का भी आमारी हूँ। मेरी पत्नी श्रीमती कान्ति
की सतत प्रेरणा भी मुझे सदेव प्राप्त रही । इस शोध-प्रबन्ध को समीचीन बनाने
में श्री अनिरुद्ध कुमार हैकरवाल (स्वतन्त्र पत्रकार) ने विशेष सहायता को तथा
मेरी पुत्री कु० रेखा हैकरवाल, एम० ए० ने प्रेस पांडुलिपि बनाने में सहायता
दी। मैं डॉ० रामत्नाल सिह, एम०ए०, बी०टी०, पी-एच०डी०, साहित्यरत्न,
(सदस्य लोक सेवा आयोग) का विशेष आभारी हूँ क्योंकि उन्हीं की कृपा से यह
पुस्तक प्रकाशित हो रही है ।
जेल निवास, जगतनारायण हैकरवाल
नेनी,
इलाहाबाद
श्येष्ठ दशहरा, २०२६
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