प्राचीन भारत में आपद्धर्म का एक ऐतिहासिक अध्ययन | Prachin Bharat Mein Aapddharma Ka Ek Etihasik Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
57 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)। 19 |
थर जां सत ˆ है वह अमृत अधात क्रम का बोतक है । जो ` ति ` हे वह मर्त्य
अनातु जगत का थोतक है । जो / यम উ वह दोनों को मिलानेवाला है क्योंकि
इतसे अमृत तथा मर्त्य दोनों की प्राप्त होती है » इसलिए यम दोनों का बन्घक है
जो व्यति इस रदस्य को जानता है वऽ जगत से त्र आर् ऋ से जगत का समुच्चय
कर स्वर्ग लोक को जाता है ।
क्रग्वैदिक काल में धर्म का स्वहूप प्रमृत; यज्ञ प्रधान धा ।
यज्ञ का सामान्य अर्य तो वैदिक कर्म কাচভী मे है निन्त उस्ना सामाजिक परिप्रेत्य
में बढ़ा ही महत्वपूर्णा स्थान था । संभवत: यज्ञ स्रामाजिक एकता के प्रावल्य भावना
का थोतक है क्योंकि कृग्वैदिक समाज में ऊंच-नीच छुआक्ुत की कोर्ड भावना नही धो
सभी परस्पर प्रेम और प्रसन्नता के वातावरण में ज्ञाम्समालित रूप से यज्ञों का संपादन
करते थे । यज्ञो में प्रयुक्त आहुतियों ভর্তি ऊ त्याग ओर उवारता की भावना का
योतन क्रतौ ई | অলি प्राचीन काल में व्याक्ति यायावर जोवन व्यतीत करता ঘা |
ययी ने उष परिश्मिण काल में स्यिरता ओर् सामाजिक एकता का सत्रपात किया । °
वन्तु इसका विक्ट शप उटव्छ' कालो ये सामने आया. जबकि
समाज में यनी को संपादित करनेवाला र्कं प्रबल पुरोदित वर्ग का जन्म इअ । प्रथमत
इनका कार्य यज्ञ संपादन के षाथ-साथ सामाजिकं ঈনলা आर् मत्रीपूर्णः भावना का विकास
करता था रिन्तु धीरे-धीरे इनके कार्यो मै विछपता दर्धिति लोती ३ । ध्म कौ শিক
ओर असाध्य कने पे इनकी महत्वपुर्ण भूमिका होती गयी और ये धर्म 3 ठेकेदार बन
गये । यज्ञों वा संपादन अब् उठ मैविक काल में লিলত छो गया । साधारण लोगो
के पहुँच से परे हो गया, पर्मयृत्र काला में समाज में वण-व्यवस्था जुत्मगर्त हो गयी ,ऊंच-
नीच, जाति प्रथा के प्राबल्य भावना क कारण यज्ञपरक ध्म साधारण जनता से
परे हो गव्रा।ऐसी विक्ट নিলি শী পণ কা व्यावहारिक फा स्मान पै प्रनल्ति हआ
जो व्यक्ति के आचरण से संबंधित था,ये काल पघर्म सत्रो কা ঘা ।
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तन्यत्यपय यदं तेनकैपेयच्छतियादने नो भे
यच्छति तस्माम्महरष्वा एव विल्सवर्ग लोक्मति ।।
2~ जी गी राणि मजु ~ ठउण््डिया आद स्नओआव द ब्रान्य । पु ¡८
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